छत्तीसगढ़

व्यंग्य हमारे समाज की हर विसंगति से लड़ सकता है : डॉ. प्रेम जनमेजय

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार लतीफ़ घोंघी की स्मृति में संगोष्ठी आयोजित

भिलाईनगर । सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार स्वर्गीय लतीफ़ घोंघी की स्मृति में
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सृजनपीठ भिलाईनगर द्वारा ‘समकालीन परिदृश्य और हिंदी व्यंग्य की चुनौतियाँ ‘ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम में नई दिल्ली से आए हिंदी के सुपरिचित व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। सृजनपीठ के अध्यक्ष ललित कुमार ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने उम्मीद जताई कि संगोष्ठी में विषय -वस्तु पर सार्थक विचार -विमर्श होगा। ललित कुमार ने कहा कि छत्तीसगढ़ के महासमुंद निवासी लतीफ़ घोंघी हिंदी के राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त व्यंग्यकार थे। वे जमीन से जुड़कर पूरी ईमानदारी से व्यंग्य लिखते थे। ललित कुमार ने कार्यक्रम में आए व्यंग्यकारों और लेखकों तथा कवियों का स्वागत करते हुए कहा समकालीन सामाजिक परिदृश्य में हिंदी में व्यंग्य लेखन की चुनौतियों में वृद्धि हुई है।
मुख्य अतिथि व्यंग्य लेखक और व्यंग्य यात्रा पत्रिका के सम्पादक डॉ. प्रेम जनमेजय ने कहा कि बहुत पुराना कथन है कि जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो ,लेकिन मेरा कहना है कि जब तोप मुकाबिल हो तो साहित्यकारों को व्यंग्य लिखना चाहिए ।डॉ. जनमेजय ने कहा कि व्यंग्य हमारे समय और समाज की हर तरह की विसंगति से लड़ सकता है। व्यंग्य विवशता जनित हथियार है और इसका प्रयोग एक सैनिक की तरह करना चाहिए। व्यंग्य लेखक हर समय में चुनौतियों से लड़ता रहता है।
आयोजन के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुये दुर्ग निवासी व्यंग्यकार श्री विनोद साव ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि ’लतीफ घोंघी हिंदी व्यंग्य के एक खेतिहर श्रमिक थे। उनकी रचनाओं के पात्र भी जीवंत चरित्र बन जाते थे। रायपुर से आए व्यंग्यकार श्री गिरीश पंकज ने कहा कि समकालीन व्यंग्य की त्रासदी यह है कि आज हमारी नई पीढ़ी पुराने व्यंग्यकारों को पढ़ना नहीं चाहती इसलिए वह व्यंग्य की परंपरा को समझ नहीं पा रही है। हम सबने पुरानी पीढ़ी के व्यंग्यकारों को पढ़ा और उनके सृजन का अनुगमन करते हुये लिखने की कोशिश की।
आयोजन के विशेष अतिथि साहित्यकार श्री रवि श्रीवास्तव ने लतीफ घोंघी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि घोंघीजी स्याही से नहीं ,बल्कि अपने पसीने से लिखते थे। वे ज़िन्दगी की जद्दोजहद में जीवन भर लगे रहे। लेकिन धारदार व्यंग्य लिखते रहे। उनके पात्रों के संवाद, उनके आस-पास के ही होते थे। इसीलिए वे आज भी पठनीय और विश्वसनीय बने हुए हैं।
विशेष अतिथि की आसंदी से रायपुर की व्यंग्य लेखिका डॉ. स्नेहलता पाठक ने भी अपने विचार व्यक्त किए। प्रथम सत्र का संचालन राजनांदगांव के साहित्यकार श्री कुबेर सिंह साहू रा ने किया इस सत्र में रायपुर के राजशेखर चौबे,दुर्ग के ऋषभ जैन और मगरलोड के वीरेन्द्र सरल ने आलेखपाठ किया। दूसरे सत्र का संचालन रायपुर के साहित्यकार डॉ. सुधीर शर्मा र ने किया। आभार प्रदर्शन शप्रदीप भट्टाचार्य ने किया।
आयोजन में सर्वश्री कनक तिवारी, मुमताज, प्रदीप वर्मा, गुलबीर सिंह भाटिया, शरद कोकास,अविनाश सिपाहा,टी.एन. कुशवाहा,एल.एन. मार्य, डॉ. नौशाद सिद्वीकी,प्रशांत कानस्कर, श्रीमती विद्या गुप्ता, सरला शर्मा ,संध्या श्रीवास्तव, निषा साहू, डॉ. संजय दानी ,मीता दास, रमाशंकर सोनी, सुशील यादव, छगन लाल सोनी, पवन कुमार दिल्लीवार, नासिर अहमद सिंकदर, आर.एन. श्रीवास्तव और विजय कुमार गुप्त सहित दुर्ग-भिलाई रायपुर तथा राजनांदगांव के अनेक व्यंग्य लेखक और विभिन्न विधाओं के साहित्यकार उपस्थित थे।