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गुणवत्ता से आत्मनिर्भरता: भारत के कौशल विकास कार्यक्रम की गुणवत्ता भारत की भविष्य की सफलताओं की कुंजी होगी

आजादी के महज 75 साल और 26 साल की औसत आबादी के साथ हम हर मायने में एक युवा देश हैं. इससे अधिक और क्या हो सकता है कि औसत 1% वृद्धि दर के साथ हमारी आबादी साल-दर-साल कम होती जा रही है. हमारे पास 15 से 59 साल के उम्र वर्ग के 63% के साथ सबसे अधिक कामकाजी उम्र की आबादी है. हालांकि, चीन और जापान जैसी अर्थव्यवस्थाओं को जनसांख्यिकीय लाभ है, लेकिन उनकी आबादी तेजी से बूढ़ी होती जा रही है.

हमारी युवा आबादी हमारी सबसे बड़ी संपत्तियों में से एक है, साथ ही आर्थिक विकास की सबसे बड़ी संचालक है. युवा आबादी हमें हमारी तेजी से औद्योगिक होती अर्थव्यवस्था के लिए तैयार कार्यबल देती है, साथ ही सालों से बढ़ी हुई बचत और घरेलू खपत को भी बढ़ाती है. यानी यह मानते हुए कि विचाराधीन आबादी के पास योगदान करने के लिए आवश्यक कौशल हैं.

हमारी मानव पूंजी का अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक भारत में 30 करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न कौशल में प्रशिक्षित करने के लिए 15 जुलाई 2015 को स्किल इंडिया (कौशल भारत) अभियान शुरू किया है. यह अभियान बहु-आयामी है और इसमें नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन, नेशनल पॉलिसी फॉर स्किल डेवलपमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप 2015, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), स्किल लोन स्कीम और रुरल इंडिया स्किल इनीशिएटिव जैसी कई पहल शामिल हैं. इनमें से प्रत्येक पहल भारतीय युवाओं की रोजगार क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से एक अलग खंड को लक्षित करती है.

उद्योग और शिक्षा क्षेत्र की खाई को पाटना
दुर्भाग्य से उद्योग और शिक्षा क्षेत्र का अंतर भारत में एक ज्ञात विषय है. 10+2 में सफल होने वाले 100 विद्यार्थियों में से केवल 26 को रोजगार मिलता है, क्योंकि उन्हें जो शिक्षा मिलती है वह नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक स्किल सेट से मेल नहीं खाती है. इसका मतलब यह है कि जहां हमारी साक्षरता दर लगातार बढ़ रही है, वहीं स्किल गैप अभी भी बना हुआ है.

इस विशिष्ट मुद्दे को हल करने के लिए, सरकार को नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (NSQF) में शामिल मौजूदा मानकों को लागू करना चाहिए. NSQF एक क्षमता-आधारित ढांचा है जो ज्ञान, कौशल और योग्यता की एक श्रृंखला के अनुसार योग्यताओं को व्यवस्थित करता है. यह स्पष्ट रूप से सीखने के नतीजे को परिभाषित करता है जो शिक्षार्थी के पास होना चाहिए चाहे वे सीखने के प्रत्येक स्तर पर औपचारिक, गैर-औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से प्राप्त किए गए हों.