दिल्ली की स्पेशल कोर्ट ने 06 मार्च शराब से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की न्यायिक हिरासत को 20 मार्च के लिए बढ़ा दिया है. क्या होती है हिरासत. न्यायिक हिरासत और पुलिस हिरासत में अंतर क्या होता है.
अक्सर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जब किसी मामले में किसी आरोपी को न्यायिक हिरासत दी जाती है और किसी को पुलिस हिरासत. कहीं गिरफ्तारी होती है और कहीं हिरासत. अगर आपको भी लगता है कि दोनों एक ही बात हैं तो ऐसा नहीं है. इनमें अंतर है.
क्या होती है कस्टडी
कस्टडी का मतलब है हिरासत यानि सुरक्षात्मक देखभाल के लिए किसी को पकड़ना. हिरासत और गिरफ्तारी तकनीक तौर पर अलग हैं. हर गिरफ्तारी में हिरासत होती है, लेकिन हर हिरासत में गिरफ्तारी नहीं होती है. किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है यदि वह अपराध करने का दोषी हो या उस पर संदेह हो. लेकिन हिरासत का मतलब उसे अस्थायी रूप से जेल में रखना होता है.
कस्टडी में क्या होता है
कस्टडी में अब पुलिस या सरकारी एजेंसियां किसी व्यक्ति को अपने साथ ले जाती हैं. किसी जगह पर रखती हैं. उससे पूछताछ करती हैं. हालांकि कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति हिरासत में 05 दिनों से ज्यादा नहीं रखा जा सकता. ऐसे में सरकारी एजेंसियों को कोर्ट में उस व्यक्ति को पेश करना होता है और हिरासत की अवधि बढ़वानी होती है, जैसी अभी सीबीआई ने स्पेशल कोर्ट में जाकर मनीष सिसोदिया मामले में किया है. उसने अदालत में तर्क दिया कि सिसोदिया पूछताछ में सहयोगी नहीं कर रहे हैं लिहाजा हिरासत की अवधि को बढ़ा दिया जाए.
सीबीआई की अपील से स्पेशल कोर्ट सहमत लगी और उसने न्यायिक हिरासत को दो हफ्ते के लिए बढ़ा दिया. अब सिसोदिया से न्यायिक हिरासत की अवधि में पूछताछ की जाएगी. वैसे हिरासत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत आजादी के अधिकार पर सीधा हमला है