भारत में निवेश के लिए बैंक एफडी निवेशकों की पहली पसंद है. इसमें मिलने वाला सुनिश्चित व सुरक्षित रिटर्न इसकी सबसे बड़ी वजह है. हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि फिक्स्ड डिपॉजिट भी दो तरह के होते हैं. बैंक एफडी के बारे में तो सब जानते हैं लेकिन कंपनी एफडी के बारे में अब भी ग्राहकों को ज्यादा जानकारी नहीं. दरअसल कंपनी फिक्स्ड डिपॉजिट, बैंक एफडी की तुलना में ज्यादा इंटरेस्ट रेट ऑफर करती हैं.
चूंकि कॉरपोरेट फिक्स्ड डिपॉजिट कंपनी द्वारा ऑफर किया जाता है इसलिए इसमें बैंक एफडी की तुलना में ज्यादा जोखिम होता है. दरअसल कंपनियों को बिजनेस से जुड़ी अलग-अलग जरूरतों के लिए पैसों की आवश्यकता होती है और इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक इन कंपनियों को कॉरपोरेट एफडी के जरिए पैसे जुटाने की अनुमति देता है.
ज्यादा ब्याज, सुरक्षा कम!
आमतौर पर कंपनी एफडी में ब्याज की दर 1-2 फीसदी ज्यादा होती है. फिलहाल सरकारी और निजी क्षेत्र के बैकों में एफडी पर इंटरेस्ट रेट 7 से 7.50 फीसदी तक है जबकि कुछ एनबीएफसी और स्मॉल बैंक 9 से 9.50 प्रतिशत ब्याज दे रहे हैं. लेकिन सबसे अहम सवाल है पैसों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ. बैंक एफडी एक सुरक्षित फाइनेंशियल प्रोडक्ट माना जाता है लेकिन इस मामले में कॉरपोरेट एफडी असुरक्षित है. क्योंकि इसमें डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी इंश्योरेंस की सुरक्षा नहीं मिलती है.
बैंक एफडी में क्रेडिट गारंटी का कवर
दरअसल बैंक के दिवालिया होने की स्थिति में डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट को ₹5 लाख तक कवर करता है. लेकिन कॉर्पोरेट फिक्स्ड डिपॉजिट में ऐसा नहीं होता है इस वजह से कंपनी एफडी में जोखिम फैक्टर बढ़ जाता है. कॉर्पोरेट या कंपनी एफडी आमतौर पर फाइनेंस कंपनी, हाउसिंग फाइनेंस कंपनी या अन्य तरह की NBFCs (नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी) द्वारा जारी की जाती है. चूंकि इनमें कोई क्रेडिट गारंटी नहीं होती है.
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि आपका कंपनी या कॉरपोरेट एफडी में आपका निवेश जोखिमपूर्ण है. लेकिन किसी कंपनी के कॉरपोरेट एफडी में इन्वेस्ट करने से पहले उस कंपनी की क्रेडिट रेटिंग जरूर देख लेनी चाहिए. निवेश से पहले कंपनी की बैलेंस शीट में अच्छे से आकलन कर लें.