भविष्य में किसी भी परेशानी से बचने के लिए, संपत्ति को किराए पर देने से पहले कई सावधानी बर्तनी जरूरी होती है. ऐसी ही एक सावधानी है किराए पर संपत्ति देते समय लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट (या रेंट एग्रीमेंट) करना. यदि पट्टा 11 महीने से अधिक का है तो रेंट एग्रीमेंट पंजीकृत या नोटरीकृत होना अनिवार्य है. हालांकि, अगर संपत्ति 11 महीने से कम समय के लिए किराए पर दी जाती है तो समझौते को नजरअंदाज किया जा सकता है. रेंट अग्रीमेंट मकानमालिक और किरायेदार के बीच भविष्य के विवादों से बचने के लिए दोनों पक्षों की ओर से पूरा किया जाने वाला अहम डाक्यूमेंट है.
ऐसे दौर में जब किरायेदारों को लेकर विवाद तेजी से बढ़ रहे हैं, इसलिए रेंट/लीज एग्रीमेंट कराना जरूरी है. एक बार जब दोनों पार्टियां समझौते में लिखे नियमों और शर्तों पर सहमत हो जाते हैं, तो बिना उनकी आपसी सहमति के बिना इसे बदला नहीं जा सकता. रेंट एग्रीमेंट को रजिस्टर करने से भविष्य के विवादों को लेकर दोनों ही पार्टियों के हित सुरक्षित हो जाते हैं.
रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट या नोटरीकृत कौन सा है बेहतर :-
नोटरीकृत रेंट एग्रीमेंट
नोटरीकृत एग्रीमेंट एक सार्वजनिक नोटरी द्वारा हस्ताक्षरित एक स्टाम्प पेपर पर मुद्रित रेंट एग्रीमेंट है. भारत में, सार्वजनिक नोटरी प्रमुख रूप से वकील और अधिवक्ता हैं. नोटरीकृत एग्रीमेंट के मामले में, नोटरी दोनों पक्षों की पहचान और दस्तावेजों की पुष्टि करता है. दोनों पक्षों (मालिक के साथ साथ किरायेदार) को इस प्रक्रिया के लिए नोटरी के सामने पेश होना होगा. एक नोटरीकृत एग्रीमेंट रजिस्टर्ड एग्रीमेंट की तुलना में बहुत सरल है क्योंकि यह केवल वकील के कार्यालय में जाकर किया जा सकता है, और इसके लिए किसी भी स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होती है. वकील द्वारा नोटरी के लिए केवल एक शुल्क लिया जाता है जो आमतौर पर इलाके के अनुसार 200 रुपये से 500 रुपये तक होता है. हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि किसी भी कानूनी कार्यवाही के मामले में, नोटरीकृत एग्रीमेंट कोर्ट में स्वीकार्य नहीं होता, क्योंकि यह किराये के लेनदेन को मान्य नहीं करता है.