जब कोई व्यक्ति या संस्थान अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो उसे दिवालिया कहते हैं. हालांकि, कोई बस यूंही अपने आपको दिवालिया घोषित नहीं कर सकता है. इसके लिए उस शख्स या संस्थान को कोर्ट में अर्जी दाखिल करनी होती है. इसके बाद कोर्ट शख्स की दलीलों को सुनता है. अगर अदालत को लगता है कि दलीलें वाजिब हैं तो दिवाला प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है. इसमें करीब 180 दिन का समय लगता है. दिवालिया घोषित होते ही उस शख्स की सारी संपत्ति जब्द कर ली जाती है. भारत में 2016 में दिवाला और दिवालिया संहिता कानून बना था.
दिवाला याचिका तब दायर की जाती है जब कोई शख्स कहीं से कर्ज लेता है और पूरी कोशिश के बावजूद वह ऋण वापस नहीं चुका पाता है. दिवाला मुख्यत: 2 प्रकार के होते हैं. पहला तथ्यात्मक दिवाला. इसमें शख्स के पास सबकुछ बेचने के बाद भी इतनी रकम नहीं हो पाती कि वह कर्ज की भरपाई कर सके. दूसरा होता है वाण्जियिक दिवाला. इसमें शख्स के पास देनदारियों से अधिक संपत्ति होती है लेकिन वह फिर भी कर्ज नहीं चुका पा रहा होता है. यह पूरी तरह से कोर्ट के ऊपर निर्भर है कि वह किसी को दिवालिया घोषित करता है या नहीं.
कितने का कर्ज नहीं चुका पाने पर बनते हैं दिवालिया
इसकी कोई सीमा नहीं है. कोर्ट अगर चाहे तो 500 रुपये चुकाने में असमर्थ व्यक्ति को भी दिवालिया घोषित कर सकती है. कुल मिलाकर कोई व्यक्ति या संस्थान दिवालिया तभी होता है जब कोर्ट इस बात की अनुमति दे देती है. दिवालिया घोषित होने के बाद सरकार उस कंपनी या व्यक्ति के सारे एसेट अपने कब्जे में लेकर नीलाम कर देती है. इस रकम से लोगों की देनदारी चुकाई जाती है. दिवाला प्रक्रिया को एक तरह से कर्ज चुकाने के लिए सरकार से मदद की गुहार के रूप में देखा जा सकता है.