देश

तीन दशक में गेहूं में कार्बोहाइड्रेट घटा, जिंक और आयरन की भी कमी, दालों में कम हो गए प्रोटीन

प्रोटीन की जरूरत पूरी करने के लिए हम दाल खाते हैं, लेकिन क्या दालों में पर्याप्त पोषण है? दाल ही क्यों, गेहूं, चावल, फल, सब्जी या फिर सुपरफूड कहे जा रहे मिलेट्स, सबमें पोषण कम हो गया है। हम यह मान कर चलते हैं कि ‘स्वस्थ भोजन’ हमें फिट और रोग मुक्त रखेगा, लेकिन यह कैसे संभव है जब हमारे खाद्य पदार्थ ही ‘कुपोषित’ हो गए हैं। हमारे दादा-दादी, नाना-नानी जो खाना खाकर स्वस्थ रहते थे, अब वह भोजन हमारे शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं दे रहा है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन), हैदराबाद की 1989 और 2017 की रिपोर्ट की तुलना तथा वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि बीते तीन-चार दशकों में खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की मात्रा काफी घट गई है। अनाज और फल-सब्जियों में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी अब उतना नहीं मिलता जितना पहले मिलता था। इसके लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बेतरतीब इस्तेमाल, संकर बीज, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के अलावा खाद्य पदार्थों को लजीज बनाने के साथ आकर्षक दिखाने की होड़ भी जिम्मेदार है।

असम कृषि विश्वविद्यालय के फूड, साइंस और न्यूट्रिशन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. मनीषा चौधरी कहती हैं कि 1989 और 2017 के बीच भारत में खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी में कई कारकों का योगदान है। एक कारण तो मिट्टी में ही पोषण की कमी है। रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी में पोषक तत्व कम हो रहे हैं, तो ऐसी मिट्टी में उपजने वाली फसलों में पोषण कम होना लाजिमी है। खेती के तौर-तरीकों में बदलाव भी बड़ा कारण है। संकर बीजों के प्रयोग और आधुनिकी तरीके से खेती के परिणामस्वरूप ऐसी फसलें पैदा हो सकती हैं जो कम पोषण देती हैं। मिट्टी और पानी में बढ़ा प्रदूषण भी फसलों की पोषकता को प्रभावित कर सकता है। जलवायु पैटर्न में परिवर्तन से भी यह संभव है। प्रसंस्करण और भंडारण के तरीके भी खाद्य पदार्थों की पोषकता को प्रभावित कर सकते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल से जुड़े कई संस्थानों के वैज्ञानिकों के शोध में गेहूं और चावल में पोषण कम होने की बात सामने आयी है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता सोवन देबनाथ बताते हैं कि चावल व गेहूं में आवश्यक पोषक तत्वों का घनत्व अब उतना नहीं है, जितना 50 साल पहले होता था। इनमें मुख्य रूप से जिंक और आयरन की कमी हो गई है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों में जिंक और आयरन का घनत्व क्रमशः 27.1 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम और 59.8 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम था। यह मात्रा वर्ष 2000 के दशक में घटकर क्रमशः 20.6 मिलीग्राम/किलोग्राम और 43.1 मिलीग्राम/किलोग्राम रह गई। इसी तरह, 1960 के दशक में गेहूं की किस्मों में जिंक और आयरन का घनत्व 33.3 मिलीग्राम/किलोग्राम और 57.6 मिलीग्राम/किलोग्राम था। जबकि वर्ष 2010 में जारी की गई गेहूं की किस्मों में जिंक एवं आयरन की मात्रा घटकर क्रमशः 23.5 मिलीग्राम/किलोग्राम और 46.5 मिलीग्राम/किलोग्राम रह गई।