जल्द ही भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और आयुष मंत्रालय 6 विशिष्टताओं को लेकर हाथ मिलाने जा रहे हैं. इसके बाद सिजोफ्रेनिया, कैंसर, बवासीर, ऑटो इम्यून स्थिति, अवसाद और अन्य कई बीमारियों का इलाज एम्स और आयुष मंत्रालय मिल करेंगे.
एक बार पूरी प्रक्रिया हो जाने के बाद मरीज पंजीकरण के लिए सीधा काउंटर पर या ऑनलाइन पंजीकरण के जरिए अपना पंजीकरण करवा सकेंगे, इसके अलावा मौजूदा ओपीडी के जरिए भी इलाज कर सकते हैं. यहां तक कि अस्पताल में भर्ती मरीज भी इस प्रक्रिया के जरिए इलाज करवा सकेंगे.
केंद्र सरकार की फरवरी में की गई घोषणा के बाद यह कदम उठाया गया है. घोषणा में कहा गया था सभी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में एकीकृत चिकित्सा की एक अलग से विंग की स्थापना की जानी चाहिए, जहां व्यवहारिक चिकित्सा और पारंपरिक चिकित्सा को एक साथ जोड़ा जा सके. यानी एलोपैथी और अन्य चिकित्सा पद्धति साथ में मिलकर इलाज कर सकें. इसी तर्ज पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और आयुष मंत्रालय सभी एम्स में एकीकृत चिकित्सा के लिए अलग से एक विभाग बनाने पर काम कर रहा है.
परियोजना की अवधारणा काफी अनोखी है. इसी के चलते आयुष मंत्रालय ने संकाय (अध्यापकों के लिए) और बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) के साथ-साथ 30 बिस्तरों वाले अंंत: रोगी पेशेंट विभाग (आईपीडी), आयुर्वेदिक फार्मेसी, एक छोटे ऑपरेशन थियेटर और योग हॉल के लिए जगह उपलब्ध कराए जाने का अनुरोध किया है. इसके साथ ही आयुष विंग के इस्तेमाल के लिए रिकॉर्ड रूम, शोध प्रयोगशाला और उपचार उपकरण की भी मांग की है.
कितनी आएगी लागत
दस्तावेज के मुताबिक आयुष और एम्स के साथ मिलकर काम करने का मकसद, मरीज को इलाज का एक ऐसा एकीकृत तरीका प्रदान करना है जहां उसके उपचार के हर पहलू पर काम किया जा सके. इस प्रक्रिया में बायो प्यूरीफिकेशन (पंचकर्म), आहार और जीवन शैली प्रबंधन (स्वास्थवृत्त), योग व ध्यान, क्षार सूत्र (पैरा सर्जिकल उपचार) और अन्य तरह की आयुष प्रणाली के उपचार को शामिल किया जाएगा.
इस प्रस्तावित परियोजना की लागत प्रत्येक एम्स के लिए 5.74 करोड़ होगी. वहीं वैकल्पिक दवाओं को एकीकृत करने के लिए 3.49 करोड़ रुपये वार्षिक होगी.
वह 5 क्षेत्र जिसमें आयुष करेगा एम्स की मदद
आयुष भारत में प्रचलित पारंपरिक चिकित्सा तंत्र के लिए दिया गया संक्षिप्त नाम है, जिसके तहत आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा, सोवा-रिग्पा और होमियोपैथी आते हैं. दस्तावेज के मुताबिक विशेषता के हिसाब से एम्स में जिन बीमारियों के इलाज को एकीकृत करने पर विचार किया जा रहा है उन्हें 6 चिकित्सकीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया है.
1- पुरानी बीमारियों के तहत जिन बीमारियों के उपचार में आयुष को एकीकृत किया जा सकता है उसमें तंत्रिका संबंधी विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर), पुराना किडनी रोग, कैंसर, ऑटोइम्यून विकार, एलर्जी, त्वचा रोग आदि बीमारियां शामिल हैं.
2- इसी तरह बायोप्यूरीफिकेशन यानी पंचकर्म के जरिए क्रॉनिक मस्कुलोस्केलेटल, गठिया, खेलों से लगी चोट और तंत्रिका विकार को संभाला जा सकता है.
3- एनोरेक्टल सर्जरी या क्षार सूत्र के अंतर्गत, बवासीर, फिस्चुला और फिशर का उपचार संभव है,
4- वहीं डायबिटीज, मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के प्रबंधन में निवारक दवा के तौर पर इसे एकीकृत किया जा सकता है.
5- दस्तावेज के मुताबिक पांचवी श्रेणी में, मनोरोग जिसमें चिंता, अवसाद, पुराना तनाव और सिजोफ्रेनिया सहित कई बीमारियों को रखा गया है.
6- इसके अलावा एक और क्षेत्र जहां आयुष को एकीकृत किया जा सकता है, वह है- मां और बच्चे की देखभाल, जिसके तहत प्रसव पूर्व और बाद में देखभाल, बच्चों में श्वसन और एलर्जी संबंधी परेशानी, ऑटिज्म और अन्य बीमारियों की देखभाल की जा सकती है.
दोनों मंत्रालयों के बीच कार्य प्रगति पर
दस्तावेज बताता है कि इस प्रक्रिया का मकसद केंद्र का दोनों ही विधाओं- एलोपैथी और आयुर्वेद को शोध के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करना है. दस्तावेज कहते हैं कि परियोजना सभी कर्मचारियों को सीखने का एक शानदार अवसर प्रदान करेगा, इसके साथ ही युवा पीढ़ी के लिए इसमें रोजगार के भी अवसर उपलब्ध हो सकेंगे. दस्तावेज के मुताबिक आयुष मंत्रालय आयुष विंग की स्थापना और पीएचडी जैसे शैक्षणिक कार्यक्रमों को विकसित करने में स्वास्थ्य मंत्रालय की मदद करेगी.