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कठिन क्यों होता जा रहा है भारत के मानसून का पूर्वानुमान करना

इस साल भारत में मानसून एक जून की जगह चार जून को पहुंचने के आसार हैं. इसके अलावा मौसम विभाग ने यह भी अनुमान लगाया है कि अल नीनो के प्रभाव के बावजूद भारत में मानसून के मौसम की बारिश ज्यादा कम नहीं होगी बल्कि सामान्य से 96 फीसद तक हो जाएगी. वैसे तो मौसम विभाग का पिछले कुछ सालों से मानसून के आने के का अनुमान सही ही बैठ रहा है. लेकिन देखने में आया है कि मानसून और बारिश के पूर्वानुमान का काम कठिन होता जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे बहुत सारे कारक काम कर रहे हैं बल्कि ऐसे कारकों की संख्या ही बढ़ गई है.

देश की निर्भरता
भारत में मानसून देश की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी धुरी है. देश की कृषि आज भी मानसून पर निर्भर है. खेत हों या फिर कुएं तालाब देश के पानी की जररूत का 70 फीसद हिस्सा मानसून पर निर्भर है यहां तक कि रबी की फसल भी, जो ठंड के मौसम में बोई जाती है, वह खेतों की नमी के मामले में मानसून से प्रभावित हो जाती है.

एक सामान्य सा कारण?
पिछले सालों में देखने में आ रहा है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का असर भारत के मानसून पर भी पड़ रहा है. वैसे  हमारे मौसम विज्ञान ने काफी तरक्की भी की है और साल दर साल उसके पास आंकड़े भी बेहतर हो रहे हैं लेकिन फिर भी मौसम का पूर्वानुमान लगाने में कठिनाई बढ़ना चिंता का विषय है

पूर्वानुमान के लिए आंकड़े
भारत का मौसम विभाग मानसून और बारिश के पूर्वानुमान के लिए  बहुत सारे आंकड़ों पर निर्भर करता है. इसके लिए वह इनसैट सैटेलाइट के आंकड़ों का उपयोग करता है जो खास तौर पर मौसम की जानकारी देने के लिए  पृथ्वी की जियोसिंक्रोनस कक्षा में स्थापित किए गए हैं. उनके साथ रियल टाइम  एनालिसिस ऑफ प्रोडक्ट्स एंड इनफोर्मेशन  डिसेमिनेशन (RAPID) नाम की एक मौसम के आंकड़ों की एप्लिकेशन का भी उपयोग करता है. जिससे उसे मौसम के चार आयामी अंतरक्रियात्मक आंकड़े मिलते हैं.

बहुत सारे कारक
इन आंकड़ों के जरिए वैज्ञानिक बादलों की गतिविधि, उनका तापमान, पानी की वाष्प की मात्रा आदि की जानकारी जुटाते हैं जिससे बारिश का अनुमान लगाया जा सके. लेकिन ये सभी जानकारियां बहुत सारी गतिविधियों से प्रभावित होती हैं. इसमें सबसे प्रमुख महासागरों, हिंद और प्रशांत महसागर की धाराओं में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, पश्चिमी विक्षोभ, मानसून पूर्व देश भर का तापमान, आदि कारक असर डालते हैं.

बहुत सारे कारक
इन आंकड़ों के जरिए वैज्ञानिक बादलों की गतिविधि, उनका तापमान, पानी की वाष्प की मात्रा आदि की जानकारी जुटाते हैं जिससे बारिश का अनुमान लगाया जा सके. लेकिन ये सभी जानकारियां बहुत सारी गतिविधियों से प्रभावित होती हैं. इसमें सबसे प्रमुख महासागरों, हिंद और प्रशांत महसागर की धाराओं में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, पश्चिमी विक्षोभ, मानसून पूर्व देश भर का तापमान, आदि कारक असर डालते हैं.