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बैंक में नष्‍ट करने के बाद करेंसी नोटों का ईंधन से लेकर खाद बनाने तक में होता है इस्‍तेमाल

करेंसी नोट को जब बंद किया तो बैंकों के पास वापस आने के बाद उनको नष्‍ट कर दिया जाता है. इसके बाद इनकी ईंटें या कंप्रेस करके ठोस गत्‍ता बना लिया जाता है. ये प्रक्रिया रिजर्व बैंक के दफ्तरों में ही पूरी की जाती है. करेंसी नोटों को नष्‍ट करने के लिए सबसे पहले उन्‍हें छोट-छोटे टुकड़ों में कतरा जाता है. रिजर्व बैंक के देश भर में मौजूद 19 दफ्तरों में नोट कतरने वाली 27 मशीनें हैं. ये मशीनें ही नोट को छोटे-छोटे टुकड़ों में कतरती हैं. इसके बाद इन कतरनों को कंप्रेस करके ठोस गत्ते में बदलती हैं.

नष्‍ट करेंसी नोट से बने इन ठोस गत्‍तों का फिर क्‍या होता है? दरअसल, आरबीआई नष्‍ट किए गए करेंसी नोटों के इस्‍तेमाल में पर्यावरण और आर्थिक परिस्‍थतियों दोनों का खास ख्‍याल रखता है. इनका ऊर्जा के तौर पर इस्‍तेमाल से लेकर कई तरह से प्रयोग किया जाता है. इन ठोस गत्‍तों से फाइल, कैलेंडर और पेपर-वेट भी बनाए जाते हैं. इसके अलावा इनसे पेन बॉक्स, टी कॉस्टर, कप और छोटी ट्रे भी बनाई जाती हैं. अमेरिका में नोटों को नष्‍ट करने का काम सीक्रेट सर्विस करती है. अमेरिका में भी नष्‍ट किए गए नोटों से गिफ्ट आइटम्‍स बनाए जाते हैं.

जमीन में दबा दिए जाते हैं ठोस गत्‍ते
भारत समेत कई देशों में नष्‍ट की गई करेंसी से बने ठोस गत्‍तों को जमीन में दबा दिया जाता है. हालांकि, ये बहुत अच्‍छा तरीका नहीं माना जाता है, क्‍योंकि इससे किसी तरह का मकसद हासिल नहीं हो पाता है. वहीं, इसे पर्यावरण के भी अनुकूल नहीं माना जाता है. वहीं, इससे किसी भी तरह के आर्थिक उद्देश्‍य की पूर्ति भी नहीं हो पाती है. दरअसल, बेकार करेंसी को रीसाइकिल करने में सिक्‍योरिटी, टेक्‍नोलॉजी, इकोनॉमिकल और पर्यावरणीय मसलों को ध्‍यान में रखा जाता है.

गत्‍तों को जलाकर नष्‍ट किया जाता है
ब्रिटेन में नष्‍ट करेंसी को जलाने का चलन है. दरअसल, ठोस गत्‍ते बहुत तेजी से जलते हैं, इसलिए उन्हें कचरा जलाने के संयंत्रों में डाल दिया जाता है. दुनियाभर में घरेलू और औद्योगिक कचरे की बढ़ती मात्रा से निपटने के समाधान के तौर पर भस्मीकरण को स्वीकार किया जाता है. इसे कचरे की समस्या का पर्यावरण के नजरिये से एक अच्छा समाधान माना जाता है, बशर्ते संयंत्र फ्लू गैस ट्रीटमेंट सिस्‍टम से लैस हो. इस प्रकार ठोस कचरे को जलाने पर पैदा होने वाले प्रदूषकों के खिलाफ पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है.