गुरिल्ला वार की हर उस तकनीक का इस्तेमाल नक्सली झारखंड मे कर रहे हैं जिसका इस्तेमाल पूर्व में लड़े गए युद्धों में हो चुका है. अपने आखिरी गढ को बचाने के लिए नक्सली अमेरिका वियतनाम युद्ध में इस्तेमाल की गई तकनीक के साथ साथ दुनिया भर के जंगलों मे हुई छापामार युद्ध की रणनीतियों को झारखंड के बैटल ग्राउंड मे उतारते नजर आ रहे हैं. बैटल ग्राउंड मे आमने-सामने मुकाबला करने से मुट्ठी भर नक्सली बच रहे हैं, लेकिन सुरक्षाबलों को ट्रैप करने के लिए और उन्हें नुकसान पहुंचाने को लेकर आईडी, गाइडेड आईडी, तीर आईडी, स्पाइक होल सहित कई अन्य तकनीक का इस्तेमाल नक्सलियों के द्वारा किया जा रहा है.
बता दें कि इस कारण अबतक 22 सुरक्षाबलों के जवान शिकार हो चुके हैं. पुलिस मुख्यालय को भी कई ऐसे सुबूत बैटल ग्राउंड से मिले हैं, जिसमें ये बात सामने आई है कि नक्सली अमेरिका वियतनाम युद्ध के साथ साथ कई अन्य गुरिल्ला वार की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. झारखंड के डीजीपी अजय कुमार सिंह के अनुसार, ऑपरेशन 01 नवंबर 2022 से चाईबासा जिले के जंगलों मे ऑपरेशन चल रहे हैं. अब नक्सलियों का आखिरी समूह एक छोटे पार्ट में रहने को मजबूर है.
डीजीपी ने बताया कि तुम्बाहाका, जहां तक सुरक्षाबल नहीं पहुंच पाते थे अब उस जगह पुलिस ने अपना फॉरवर्ड पोस्ट बना लिया है. तुम्बाहाका इलाके में नक्सलियों ने स्पाइक होल और आईडी लगा रखी थी. पुलिस के अनुसार, दूसरी जगह जो टेक्निक अपनाई गई थी वहां से जानकारियां जुटाकर माओवादी उसका प्रयोग चाईबासा में कर रहे हैं
डीजीपी बताते हैं कि पूर्व में आईडी और लैंड माइंस का ईस्तेमाल नक्सली किया करते थे तो अब स्पाक्स और स्पाइक होल का इस्तेमाल कर रहे हैं. स्पाक्स और स्पाइक होल का इतिहास अमेरिका और वियतनाम युद्ध मे देखने को मिला है. इस युद्ध पद्धति के कारण नवंबर माह से अबतक 22 सुरक्षाबलों के जवान नक्सलियों के ट्रैप में आकर घायल हो गए हैं. वहीं. नवंबर माह से अबतक 08 ग्रामीणों की मौत हो चुकी है.