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चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए चांद के दक्षिणी ध्रुव को दी जा रही तरजीह, क्‍या है वजह

 भारत चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 की दोपहर 2.35 बजे श्रीहरिकोटा से मिशन मून के लिए रवाना करेगा. इससे पहले 2019 में भेजा गया चंद्रयान-2 सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान क्षतिग्रस्‍त हो गया था. अब एक बार फिर भारत का रोबोटिक अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर पहली बार उतरने के लिए निकलेगा. इस बार चंद्रयान-3 की चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास एक अनजान जगह पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की जाएगी. यह चांद का ऊंचे पहाड़ों और गड्ढों से भरा अंधेरे वाला क्षेत्र है. वैज्ञानिकों को उम्‍मीद है कि हमेशा ठंडी रहने वाली चांद की इस क्षेत्र की उपसतह पर जल और बर्फ मिल सकता है. सवाल ये उठता है कि भारत समेत दुनियाभर के देश अपने अभियान की चांद के दक्षिणी ध्रुव में ही सॉफ्ट लैंडिंग कराने को तरजीह क्‍यों देते हैं.

द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रयान-3 जैसे मिशन मून के लिए चांद के दक्षिणी ध्रुव को प्राथमिकता देने को लेकर कई मत हैं. कुछ अंतरिक्ष विज्ञानियों का मानना ​​​​है कि दक्षिणी ध्रुव पर पानी की बर्फ अधिक है, जो मूल्यवान संसाधन है. साथ ही यहां लैंडिंग में आसानी भी रहती है. वहीं, कुछ का कहना है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव सौर ऊर्जा, भौतिक संसाधनों के मामले में उत्तरी ध्रुव से बेहतर है. 1990 के दशक में चंद्रमा के लिए कई मिशन दक्षिणी ध्रुव पर केंद्रित थे. इससे दक्षिणी ध्रुव को भविष्य के अभियानों के लिए पसंदीदा लैंडिंग साइट के तौर पर मजबूत करने में मदद मिली.

 भारत चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 की दोपहर 2.35 बजे श्रीहरिकोटा से मिशन मून के लिए रवाना करेगा. इससे पहले 2019 में भेजा गया चंद्रयान-2 सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान क्षतिग्रस्‍त हो गया था. अब एक बार फिर भारत का रोबोटिक अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर पहली बार उतरने के लिए निकलेगा. इस बार चंद्रयान-3 की चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास एक अनजान जगह पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की जाएगी. यह चांद का ऊंचे पहाड़ों और गड्ढों से भरा अंधेरे वाला क्षेत्र है. वैज्ञानिकों को उम्‍मीद है कि हमेशा ठंडी रहने वाली चांद की इस क्षेत्र की उपसतह पर जल और बर्फ मिल सकता है. सवाल ये उठता है कि भारत समेत दुनियाभर के देश अपने अभियान की चांद के दक्षिणी ध्रुव में ही सॉफ्ट लैंडिंग कराने को तरजीह क्‍यों देते हैं.

द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रयान-3 जैसे मिशन मून के लिए चांद के दक्षिणी ध्रुव को प्राथमिकता देने को लेकर कई मत हैं. कुछ अंतरिक्ष विज्ञानियों का मानना ​​​​है कि दक्षिणी ध्रुव पर पानी की बर्फ अधिक है, जो मूल्यवान संसाधन है. साथ ही यहां लैंडिंग में आसानी भी रहती है. वहीं, कुछ का कहना है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव सौर ऊर्जा, भौतिक संसाधनों के मामले में उत्तरी ध्रुव से बेहतर है. 1990 के दशक में चंद्रमा के लिए कई मिशन दक्षिणी ध्रुव पर केंद्रित थे. इससे दक्षिणी ध्रुव को भविष्य के अभियानों के लिए पसंदीदा लैंडिंग साइट के तौर पर मजबूत करने में मदद मिली.