सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि दिल्ली सरकार विज्ञापनों पर 1,100 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है, तो रेल परियोजना को भी फाइनेंस मुहैया करा सकती है. दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल प्रोजेक्ट (Delhi-Meerut Rapid Rail Project) से जुड़े केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की AAP सरकार (AAP Government) पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘अगर पिछले तीन साल में विज्ञापनों पर 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं, तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को फाइनेंस मुहैया कराया जा सकता है.’ बहरहाल दिल्ली राज्य सरकार आज दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल प्रोजेक्ट के लिए बकाया रकम का भुगतान करने पर सहमत हो गई.
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि 2020 से 2023 तक विज्ञापन के लिए 1073.16 करोड़ रुपया खर्च किया गया. 2020-21 में 296.89 करोड़, 2021-22 में 579.91 करोड़ और 2022-23 में 196.36 करोड़ रुपया विज्ञापन पर खर्च किया गया. दिल्ली सरकार ने अपने हलफनामे में इस खर्च का बचाव करते हुए कहा कि सरकारी नीतियों के प्रचार के लिए ये खर्च वाजिब और किफायती है. यह खर्च किसी भी तरह से दूसरे राज्यों के प्रचार से ज्यादा नहीं है.
आम आदमी पार्टी की सरकार ने कहा कि प्रचार पर खर्च गुड गर्वनेंस और प्रभावी प्रशासन के लिए जरूरी है. AAP सरकार ने कहा कि जीएसटी ( GST) से राज्य के राजस्व में बढ़ोतरी का वादा कई कारणों से पूरा नहीं हो पाया है. जिसमें कोविड-19 महामारी का प्रभाव भी शामिल है. दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार से अगले पांच वर्षों तक मुआवजा जारी रखने की भी अपील की है. साल 22-23 में दिल्ली को GST मुआवजा 10000 करोड़ रुपये मिला था. लेकिन 2023-24 में ये सिर्फ 3802 करोड़ रुपये मिलेंगे. इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक कल्याण जैसी जरूरी सार्वजनिक सेवाओं के खर्च भी बढ़ गए हैं.