राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज दुनियाभर में प्रसिद्ध पुस्तकालयों की समृद्धि और विविधता का प्रदर्शन करने के लिए प्रगति मैदान, नई दिल्ली में दो दिवसीय ‘पुस्तकालय महोत्सव’ का उद्घाटन किया. यह आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा पुस्तकालयों के विकास और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने और पढ़ने की संस्कृति को विकसित करने के उद्देश्य से किया गया है.
समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने सभ्यताओं के बीच की खाई को पाटने और ज्ञान को अधिक सुलभ बनाने के लिए आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि पुस्तकालयों का विकास समाज और संस्कृति के विकास से जुड़ा हुआ है. यह सभ्यताओं की प्रगति का पैमाना भी है. उन्होंने कहा कि इतिहास ऐसे संदर्भों से भरा पड़ा है, जिसमें आक्रमणकारियों ने पुस्तकालयों को नष्ट करना आवश्यक समझा.
उन्होंने बताया कि आधुनिक युग में ऐसी घटनाएं नहीं होती हैं लेकिन दुर्लभ पांडुलिपियों और पुस्तकों के गायब होने की घटनाएं घट रही हैं. उन्होंने कहा कि दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों को वापस लाने के प्रयास किए जा सकते हैं. राष्ट्रपति ने कहा कि एक छोटी सी किताब विश्व इतिहास की दिशा बदलने की क्षमता रखती है. उन्होंने गांधीजी की आत्मकथा का जिक्र किया, जहां उन्होंने जॉन रस्किन की किताब ‘अनटू दिस लास्ट’ के उनके जीवन पर बड़े सकारात्मक प्रभाव का जिक्र किया है.
इस मौके पर संस्कृति और कानून एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी और संस्कृति सचिव गोविंद मोहन भी उपस्थित थे. मेघवाल ने कहा कि पुस्तकालय महोत्सव 21वीं सदी में भारत को विश्व की ज्ञान महाशक्ति बनाने के लक्ष्य की दिशा में एक कदम है. मीनाक्षी लेखी ने पुस्तकालय विकास के लिए प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए देश के हर कोने तक पहुंचने और पढ़ने की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की चर्चा की.