दिल्ली समेत कई राज्यों में एकाएक बढ़े डेंगू के मामलों ने लोगों की टेंशन बढ़ा दी है. इसके चलते वायरल बुखार का भी खतरा बना हुआ है. दरअसल डेंगू और वायरल फीवर के लक्षण लगभग एक जैसे होने से लोग इनमें अंतर नहीं कर पा रहे हैं. इसके चलते मरीज की हालत अधिक बिगड़ जाती है. इसलिए किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सतर्क रहना बेहद जरूरी है. एक्सपर्ट के मुताबिक, यदि डेंगू के लक्षणों को पहचानकर समय पर इलाज न कराया जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकता है. आइए गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर (डॉ.) सैफ अनीष से जानते हैं डेंगू और वायरल की कैसे करें पहचान और क्या हैं लक्षण.
क्या है डेंगू और वायरल फीवर की वजह?
डॉ. सैफ के मुताबिक, वायरल फीवर इंफेक्शन की वजह से होता है. इसके होने से सर्दी, जुकाम और बुखार की समस्या उत्पन्न होती है. बदलते मौसम में खुद की सेहत का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. खासतौर पर कमजोर इम्युनिटी का. क्योंकि इस मौसम के दौरान इस वायरस की चपेट में सबसे ज्यादा कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग आ जाते हैं. वायरल फीवर आमतौर पर 5 से 7 दिनों के अंदर ठीक हो जाता है. वहीं, डेंगू फीवर संक्रमित मच्छर के काटने से होता है. बता दें कि, संक्रमित मच्छर काटने के कुछ दिनों के बाद इसके लक्षण दिखने लगते हैं. यदि डेंगू का सही इलाज ना कराया जाए तो व्यक्ति की हालत गंभीर हो सकती है. इसका असर लिवर पर भी देखने को मिलता है.
डेंगू में स्थिति कैसे बन जाती खतरनाक?
डेंगू होने पर बॉडी में प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगती हैं. इस तरह से एकाएक प्लेटलेट्स काउंट कम होना इमरजेंसी की स्थिति की ओर इशारा करता है. इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि हीमोग्लोबिन के स्तर पर नज़र रखना. यह परेशानी प्लाज्मा रिसाव के कारण बढ़ सकती है. ऐसा होने से गंभीर निर्जलीकरण के कारण पेट और फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा होने अंदेशा रहता है. बता दें कि, यदि रक्त की मात्रा बढ़ाने के लिए अंतःशिरा तरल पदार्थों के साथ आक्रामक तरीके से इलाज नहीं किया जाता है, तो शरीर शॉक में जाने का खतरा बढ़ सकता है.
किसे अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत
डेंगू फीवर या वायरल फीवर दोनों ही स्थिति में जांच कराना बेहद जरूरी होता है. इससे बीमारी की गंभीरता का सही आकलन हो जाता है. हालांकि कई लोगों में ऐसे सामान्य लक्षण होते हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है. ऐसे लोग घर पर रहकर भी डॉक्टर की सलाह से इलाज कर सकते हैं. लेकिन यदि किसी को पेट में तेज दर्द, लगातार उल्टी, सांस तेज चलना, मसूड़ों और नाक से खून आना, थकान, बेचैनी, खून या मल में उल्टी आदि होने की समस्या है तो उन्हें अस्पताल में जरूर भर्ती हो जाना चाहिए.