अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका पर 1 मई को विचार किया जाएगा. उस दिन शीर्ष अदालत यह तय करेगा कि इस मामले की दोबारा सुनवाई की जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2023 को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
अपने फैसले में प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र के फैसले को वैध ठहराते हुए कहा था कि यह अस्थाई प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे हटाने का पूरा अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल करने तथा निर्वाचन आयोग को 30 सितंबर 2024 तक राज्य में विधानसभा चुनाव कराने के भी निर्देश दिए थे.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा था, “जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. भारत में शामिल होने के बाद उसने संप्रभुता का तत्व बरकरार नहीं रखा. ऐसे में उसके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं रखे जा सकते.” सीजेआई ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को लेकर कहा था, “केंद्र के हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती, इससे अराजकता फैल जाएगी. राष्ट्रपति को अनुच्छेद-370 को रद्द का अधिकार है. उनके पास विधानसभा को भंग करने का भी अधिकार है.”
सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ ने कहा था, “हमारा मानना है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है और इसे एक अंतरिम प्रक्रिया को पूरा करने के लिए संक्रमणकालीन उद्देश्य की पूर्ति के लिए पेश किया गया था. राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण यह एक अस्थायी उद्देश्य के लिए था. टेक्स्ट पढ़ने से यह भी पता चलता है कि यह एक अस्थायी प्रावधान है और इस प्रकार इसे संविधान के भाग 21 में रखा गया है.”
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की इस संविधान पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल थे. सीजेआई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में तीन अलग-अलग फैसले लिखे गए, लेकिन सभी जज एक निष्कर्ष पर सहमत थे.
गौरतलब है कि अगस्त 2019 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था.