एक्सक्लूसीव ज्योतिष

विश्व का एकमात्र मंदिर, जहां भगवान शिव और मां आदिशक्ति साक्षात हुए प्रकट, जानें मान्यता

जनपद मुख्यालय से 12 किलोमीटर पश्चिम जलेबीगंज रोड पर दुबौला चौराहे से 1 किलोमीटर पश्चिम में स्थित बाबा बड़ोखर नाथ मंदिर अपने आप में बहुत रहस्यों को संजोए हुए है. यहां के लोगों की मान्यता है कि यह मंदिर केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर मां आदिशक्ति और देवाधिदेव महादेव स्वयं प्रकट हुए हैं. किसी के द्वारा स्थापित नहीं किए गए.

एक मान्यता और भी है कि जब त्रेतायुग में भगवान राम वनगमन पर थे, तब माता आदि शक्ति और भगवान शिव विचरण करते हुए गुरु वशिष्ट के पावन धरा से होते हुए इसी रास्ते से गए थे. इस स्थान का वर्णन रामचरितमानस के बालकांड में भी देखने को मिलता है, जिसमें लिखा है ‘एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं ॥ संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी ॥’ अर्थ- एक बार त्रेता युग में शिव अगस्त्य ऋषि के पास गए. उनके साथ जगज्जननी भवानी सती भी थीं ऋषि ने संपूर्ण जगत् के ईश्वर जानकर उनका पूजन किया. वहीं इसके अगले दोहे में वर्णन है कि किस तरह इसी स्थान पर महादेव राम को देखकर हर्षित हो जाते हैं, लेकिन समय पर स्थित को भांपते हुए वह कुछ नहीं कहते, जिसका दोहा कुछ इस प्रकार है ‘संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरपु बिसेषा ॥ भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानिन कीन्हि चिन्हारी॥’ अर्थ- शिव ने उसी अवसर पर राम को देखा और उनके हृदय में बहुत भारी आनंद उत्पन्न हुआ. शोभा के उस समुद्र को शिव ने नेत्र भरकर देखा, परंतु अवसर ठीक न जानकर परिचय नहीं किया.

क्या है मान्यताएं

लोग बताते हैं कि पूरे विश्व में यह एक ऐसा अलौकिक मंदिर है, जहां पर माता आदिशक्ति एवं देवाधिदेव महादेव दोनों लोग स्वयंभू हैं. किसी के द्वारा स्थापित नहीं किए गए. लोगों में यह भी मान्यताएं है कि त्रेतायुग  में वशिष्ठ ऋषि के आश्रम बस्ती के इसी पावन भूमि से माता आदि शक्ति और भगवान शिव गुजरे थे. हालांकि इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं मौजूद हैं, लेकिन मान्यताएं और कथानक चले आ रहे हैं.

क्या है इतिहास

स्थानीय लोग बताते हैं कि यह जनपद का प्राचीनतम मंदिर है. कई दशक पूर्व यहां सब जंगल हुआ करता था. इस जंगल और झाड़ में एक व्यक्ति वृक्ष को काट रहा था. बगल में एक अकोल पेड़ से सटा हुआ एक पिंड था. जिसमें भूल बस उसकी कुल्हाड़ी लग गई. इसके बाद उस पिंड व अकोल के वृक्ष से निरंतर रक्त की धारा का प्रवाह होने लगी. जिससे पेड़ काट रहा व्यक्ति घबरा कर भाग गया. घर पहुंचने पर वह लकवा ग्रस्त हो गया और मुश्किल से दो-तीन दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई. लोगों ने यह भी बताया कि उस पिंड से सटे वृक्ष का जड़ भी आगे चलकर पत्थर में परिवर्तित हो गया, जो मां आदिशक्ति के रूप में इस मंदिर परिसर में पूजी जाती है. वहीं दूसरी तरफ माता के मंदिर से लगभग 40 मीटर दूर भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग है, जो स्वत: जमीन से निकला हुआ है

पर्यटन विभाग ने इतना धन किया अवमुक्त

मंदिर के संरक्षक माता प्रसाद तिवारी बताते हैं कि मंदिर पहले जीर्ण-क्षीर्ण अवस्था में था. 2016-17 में क्षेत्रवासियों के द्वारा मंदिर के पुनः निर्माण के लिए समिति का गठन किया गया एवं सबसे सहयोग राशि लेते हुए मंदिर अपने नए रूप में 2022 में बनकर संपन्न हुआ. इसी दौरान माता प्रसाद तिवारी के प्रयासों से पर्यटन विभाग के द्वारा भी 52 लख रुपए की राशि मंदिर के बाउंड्री वॉल, धर्मशाला एवं सुंदरीकरण के लिए अवमुक्त हुआ. इसमें बाउंड्री वॉल, धर्मशाला के निर्माण के उपरांत जो पैसा बचा हुआ था वह फिर विभाग को वापस चला गया.

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