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IC-814: विमान में था रॉ का बड़ा जासूस भी…जिसने हाईजैक आशंका को अफवाह माना

जब ये पता लगा कि भारत के IC – 814 विमान को हाईजैक कर लिया गया है तो भारत से लेकर नेपाल और यूरोप तक हड़कंप मच गया. क्योंकि इन सभी जगहों के यात्री विमान में सफर कर रहे थे. जब विमान को कंधार ले जाया गया तो भारत में इस विमान में यात्रा कर रहे लोगों की लिस्ट जारी की गई. लेकिन इसमें 16 सी सीट पर बैठे यात्री का नाम जानबूझकर नहीं दिया गया. क्योंकि इस सीट पर भारत की खुफिया एजेंसी का एक बड़ा अधिकारी बैठा हुआ था.

लिस्ट में इस यात्री का नाम इसलिए जारी नहीं किया गया कि उसका नाम पता लगने के बाद अगर हाईजैकर्स के पास ये जानकारी पहुंच जाती कि ये शख्स कोई और नहीं बल्कि रॉ का अफसर है तो उसको तुरंत गोली मार दी जाती. वह शख्स भी तब तक डरता रहा जब तक हाईजैकर्स ने विमान यात्रियों को आजाद नहीं कर दिया.

वह सीट नंबर 16 सी पर बैठा था
“इंडिया टुडे” की एक रिपोर्ट में इस जासूस का नाम और पहचान उजागर की गई है. वह काठमांडू से IC – 814 पर सवार हुए थे. उनका सीट नंबर था 16 C. दिल्ली में उनकी पत्नी का आपरेशन हुआ था. वो उनके पास आ रहे थे. उनका नाम था शशिभूषण सिंह तोमर.

काठमांडू में रॉ का चीफ था
वह काठमांडू में रॉ स्टेशन के प्रमुख थे. उनका दूसरा परिचय ये भी था कि वह काठमांडू में भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव थे, जो भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रॉ के काठमांडू स्टेशन प्रमुख के रूप में काम कर रहे थे.

यात्रियों की सूची में उसका नाम छिपाया गया
भारतीय अधिकारियों ने दिल्ली और काठमांडू में इंडियन एयरलाइंस द्वारा जारी की गई यात्रियों की सूची में उनका नाम आने ही नहीं दिया. ये वही शख्स थे, जिसे जब उनके अधीन एक जासूस ने ये खबर दी कि आतंकवादी भारतीय विमान को हाईजैक कर सकते हैं, तो उन्होंने उसको डपट दिया कि अफवाह फैलाने की जरूरत नहीं है. उस जासूस की रिपोर्ट दिल्ली तक नहीं भेजी गई.

08 दिनों तक वह जासूस विमान में फंसा रहा
“इंडिया टुडे टीवी” ने तब तत्कालीन रॉ (RAW) प्रमुख एएस दुलत से बात की तो उन्होंने तसदीक की कि ये बात सच है. उनका कहना था कि वह विमान में आठ दिनों तक फंसे रहे. उन्हें कतई नहीं मालूम था कि विमान हाईजैक हो जाएगा. जबकि उन्हें ये जानकारी होनी चाहिए थी. इसकी बजाए वह भारत के विमानन इतिहास के सबसे बुरे अपहरणों में एक का शिकार बन गये.

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण स्वामी ने भी वर्ष 2000 में द फ्रंटलाइन के लिए रिपोर्ट दी थी कि तोमर अपनी पत्नी से मिलने दिल्ली लौट रहे थे, जो अस्पताल में भर्ती थीं.

ये भाग्य का खेल था कि तोमर उसी विमान में आठ दिनों तक चुपचाप कैद रहे. ये सोचकर वह सबसे ज्यादा तनाव में भी रहे होंगे कि कहीं हाईजैकर्स को उनकी जानकारी हो गई तो उनका क्या होगा.

विमान हाईजैक की रिपोर्ट खारिज कर दी इस अफसर ने 
उन्होंने ही अपने जूनियर रॉ अधिकारी की इस रिपोर्ट को खारिज ही नहीं किया था बल्कि फटकार भी लगाई थी कि इंडियन एयरलाइंस का काठमांडू से उड़ान भरने वाला विमान हाईजैक किया जाने वाला है.

सूचना को लाने वाले मातहत जासूस को फटकार भी लगाई थी
पूर्व रॉ अधिकारी आर.के. यादव ने 2014 में अपनी पुस्तक ‘मिशन रॉ’ में लिखा है, “एक जूनियर रॉ ऑपरेटिव, द्वितीय सचिव यूवी सिंह ने भारतीय दूतावास में रॉ के वरिष्ठ अधिकारी काउंसलर एस.बी.एस. तोमर को सूचित किया कि उनके सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा विमान के अपहरण की आशंका है.” तोमर ने उस रॉ जासूस से पूछा कि किस सूत्र के जरिए वो ये बात कह रहा है, तब उसने बताया कि उनका स्रोत “एयरपोर्ट पर मौजूद एक जिम्मेदार अधिकारी है.”

जूनियर अफसर को फटकारा था कि अफवाह नहीं फैलाएं
किताब में यादव ने लिखा, ये सुनते ही तोमर ने जूनियर रॉ अधिकारी को फटकार लगाई और अफवाह नहीं फैलाने को कहा. यह रिपोर्ट कभी रॉ मुख्यालय नहीं भेजी गई. बगैर जांच किए इसे दबा दिया गया. हालांकि तोमर को इस गफलत की कोई सजा नहीं मिली. किताब लिखती है कि वह तत्कालीन पीएमओ में एक सीनियर अफसर के करीबी थे, लिहाजा उन्हें दंडित करने की बजाए अमेरिका में आकर्षक विदेशी नियुक्ति दे दी गई, जबकि उनसे इतनी बड़ी गड़बड़ी हुई.

बाद में रॉ के तत्कालीन प्रमुख दुलत ने टीवी इंटरव्यू में ये भी कहा, पहले तो उन्हें नहीं मालूम था कि तोमर विमान में थे, लेकिन ये बाद मालूम हुआ. हालांंकि दुलत ने अपनी किताब कश्मीर: द वाजपेयी इयर्स में दुलत ने ये जानकारी छिपा ली थी कि तोमर उस उड़ान में थे.

आईएसआई को पता लग गई थी ये बात
हालांकि कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि चूंकि आईएसआई हर जगह फैली हुई थी, लिहाजा उसने ये बात पता कर ली थी कि विमान में रॉ का भी एक जासूस मौजूद है. फिर उन्हें ये भी पता चल गया कि वह शख्स तोमर थे लेकिन पता नहीं ये बात विमान हाईजैकर्स तक पहुंची या नहीं. क्योंकि तोमर के साथ वही सलूक उन्होंने विमान में किया, जैसा बाकि यात्रियों के साथ. उन्हें भी बाकी यात्रियों के साथ ही रिहा किया गया.