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समाज में नहीं था सरनेम लगाने का रिवाज! कब और किसने शुरू की यह परंपरा? पिता और पति का उपनाम क्यों लगाती हैं महिलाएं

बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने ‘द ग्रेट इंडियन कपिल शर्मा शो’ सीजन 2 के ट्रेलर में बताया कि उन्होंने शादी के बाद अपने नाम के पीछे कपूर जोड़ लिया है. वह शो में अपनी नई फिल्म ‘जिगरा’ के प्रमोशन के लिए पहुंची थीं. उन्होंने शो में खुद का परिचय आलिया भट्ट कपूर बोलकर दिया. यह सरनेम की पावर ही है जो इंसान को बाकियों से अलग बनाती है. शायद इसलिए बॉलीवुड में बच्चन, कपूर, भट्ट, खान जैसे सरनेम किसी नाम के मोहताज नहीं है. सरनेम का खेल हजारों साल पुराना है.

चीन में शुरू हुआ सरनेम का सिलसिला?
सरनेम को लास्ट नेम और फैमिली नेम भी कहा जाता है. यह इंसान के पूर्वजों का इतिहास बताता है. ली जिनगयू की लिखी ‘द 100 फैमिली सरनेम’ नाम की किताब के अनुसार सरनेम का सिलसिला चीन से शुरू हुआ. लगभग 4,022 साल पहले चीन के राजा फू शी ने जनगणना के लिए लोगों के नाम के पीछे सरनेम लगवाना शुरू किया.

पिता के सरनेम की कहानी
चीन में जब सरनेम का चलन शुरू हुआ, तब लोग अपने पिता का उपनाम लगाने लगे. वहीं अरब देशों में लड़कों के नाम के पीछे इबन लगने लगा यानी ‘son of’. हर लड़के के नाम के पीछे पिता के नाम के अलावा अल भी लगने लगा. अल का मतलब है the. अंग्रेजी में यह शब्द सम्मान के लिए लगाया जाता है. इंग्लैंड में सरनेम का सिलसिला 1806 में शुरू हुआ. दरअसल 1066 में इंग्लैंड पर  फ्रांस के नॉरमैंडी के सम्राट ने हमला किया. उनके कब्जे के बाद लोगों को अलग से पहचानने के लिए सरनेम लगने शुरू हुए. यहां पिता का सरनेम नहीं बल्कि गांव के हिसाब से उपनाम लगाया जाने लगा. अधिकतर जमींदार ही सरनेम लगाते थे. नॉरमाड के लोग ‘दे’ बोलने से पहले फ्रांस में मौजूद अपने गांव का नाम लगाते थे.

भारत में नहीं था सरनेम का रिवाज
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर अमरजीव लोचन कहते हैं कि भारत में सरनेम लगाने का चलन नहीं था. प्राचीन भारत में केवल नाम मिलते थे. लेकिन पूर्व मध्यकाल में भारतीय समाज में जातियों और प्रजातियों के सबूत मिलते हैं. फोरबियर्स डॉट आईओ (forebears.io) वेबसाइट के अनुसार भारत में 3955697 सरनेम हैं. वहीं, एनसेस्ट्री डॉट कॉम के सर्वे के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा 70362196 ‘देवी’ सरनेम लगाया जाता है. इसमें बाद 34,837,930 लोग ‘सिंह’ और 31,111,143 लोग ‘कुमार’ लगाते हैं.

शादी के बाद महिलाएं क्यों बदलती हैं सरनेम
भारत में शादी के बाद अक्सर महिलाएं अपने पति का सरनेम इस्तेमाल करती हैं. इसके लिए कोई नियम या कानून नहीं बना है. यह पितृसत्ता की देन है. समाज में महिलाओं को कभी स्वतंत्र पहचान नहीं दी गई. महिलाओं को हमेशा से पहले पिता और शादी के बाद पति से बांधने की कोशिश की गई. यह सोच समाज में परंपरा बन गई. लेकिन अब समय बदल रहा है. बेटरहाफ नाम की मैट्रीमोनी वेबसाइट ने एक सर्वे किया जिसमें 92% भारतीयों ने माना कि शादी के बाद लड़कियों को अपने हस्बैंड का सरनेम लगाना जरूरी नहीं है.

मां का सरनेम भी लगाती हैं लड़कियां
अगर हम अपने धर्म ग्रंथों पर गौर करें तो पाएंगे कि उसमें बच्चों को मां के नाम से पुकारा जाता था जैसे यशोदा का नन्दलाला, अंजनि पुत्र हनुमान, कुंती पुत्र कर्ण. इसी तरह दुनिया के कुछ देशों में बच्चों के नाम के पीछे मां का सरनेम जोड़ा जाता है. ब्राजील उनमें से एक है. वहीं, यूरोप के कुछ देशों में मां-पिता दोनों का सरनेम लगता है. इनमें स्पेन, पुर्तगाल और फ्रांस शामिल है.

बॉलीवुड में भी मां के सरनेम का बोलबाला
कई बॉलीवुड सेलिब्रिटीज ने पिता के सरनेम को लगाने की प्रथा को तोड़ा. वह अपनी मां का सरनेम इस्तेमाल करते हैं. आमिर खान के भतीजे इमरान खान के पिता का नाम अनिल पटेल है और मां का नाम नुसरत खान. पेरेंट्स का डिवोर्स होने के बाद उन्होंने अपने नाम के पीछे अपनी मां का सरनेम लगा लिया. मल्लिका शेरावत ने भी अपनी मां संतोष सहरावत का सरनेम लगाया. दरअसल जब उन्होंने बॉलीवुड में डेब्यू किया तो उनके पिता उनसे नाराज थे. इस वजह ने मल्लिका ने अपने पिता का सरनेम लांबा अपने नाम के पीछे से हटा दिया. दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो ने भी अपनी मां का सरनेम लगाया. वहीं, मशहूर फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली ने अपने नाम के पीछे अपनी मां का नाम जोड़ा है क्योंकि वह उनसे बहुत प्यार करते हैं.

जैसा काम वैसा उपनाम
इंग्लैंड की तरह भारत में उपनाम काम के हिसाब से रखे गए. जैसे इंग्लैंड में वॉकर सरनेम उन लोगों से आया जो ऊन का काम करते थे. लिस्टर सरनेम उन लोगों का होता था जो रंगाई का काम करते थे, किचनर उपनाम वावर्ची का काम करने वालों का होता था. ठीक इसी तरह भारत में काम के हिसाब से समाज के लोगों को 4 जातियों में बांटा गया. बच्चों को पढ़ाने और पूजा-पाठ के काम करने वालों को ब्राह्मण कहा गया. जो युद्ध करते थे वो क्षत्रिय, जमीदारों और व्यापारियों को वैश्य और नौकरों को शूद्र मनाना गया. इसी आधार पर उनके उपनाम रख दिए गए.

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