सुदीर्घ साहित्य साधना और लोकभाषा में श्रेष्ठ साहित्य सृजन के लिए छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार, भिलाई नगर निवासी डॉ. परदेशीराम वर्मा को भोपाल (मध्यप्रदेश )में सम्मानित किया गया. उन्हें वर्ष 2024 के लिए दुष्यंत कुमार राष्ट्रीय लोकभाषा अलंकरण से नवाज़ा गया ।
दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय द्वारा यह राष्ट्रीय अलंकरण एवं स्मृति सम्मान समारोह अपने तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन 30 दिसम्बर 2024 को आयोजित किया गया. समारोह में भिलाई नगर छत्तीसगढ़ के साहित्यकार डॉ. परदेशीराम वर्मा के साथ प्रख्यात साहित्यकार डॉ. ममता कालिया और डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी को भी सुदीर्घ साधना के लिए सम्मानित किया गया। तीनों साहित्यकारों को समारोह के अतिथि सुप्रसिद्ध कथाकार शशांक और दुष्यंत कुमार के सुपुत्र आलोक त्यागी के हाथों यह सम्मान मिला।
इस अवसर पर डॉ. वर्मा को दिए गए प्रशस्ति-पत्र में छत्तीसगढ़ के जनजीवन पर उनके चर्चित कथा लेखन और उन्हें पाँच बार अखिल भारतीय पुरस्कार प्राप्त होने तथा उनके साहित्यिक अवदान की चर्चा हुई. कथाकार शशांक ने कहानी ‘लोहार बारी‘ तथा ‘गंगा की वापसी‘ सहित डॉ. परदेशीराम वर्मा की अन्य कहानियों को समकालीन समाज का आईना बताया। उन्होंने कहा कि इनकी कहानियों से छत्तीसगढ़ का जनजीवन, संघर्ष और अन्य विशेषताएँ सामने आती हैं.प्रशस्ति-पत्र का वाचन विशाखा राजूरकर ने किया। आलोक त्यागी ने कहा कि डॉ. परदेशीराम वर्मा कमलेश्वर जी के प्रिय रचनाकार हैं। डॉ. वर्मा का बहुत लम्बे समय से हमारे परिवार के साथ परिचय है। इस अवसर पर कमलेश्वर की सुपुत्री मानू भी उपस्थित थी।
सम्मान समारोह में डॉ. परदेशीराम वर्मा ने कहा कि यह मेरा सौभग्य रहा कि मेरे लेखन के शुरूआती दिनों में ही कथाकार कमलेश्वर की नजर मुझ पर पड़ गई। उनके प्रोत्साहन से मुझे बल मिला और मेरे लेखन को सही दिशा भी मिली। डॉ. वर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद मध्यप्रदेश की राजधानी में सम्मान मिलना पुराने दिनों कीे याद ताजा कर जाता है। उन्होंने आगे कहा कि मेरे उपन्यास ‘प्रस्थान‘ के लिए महन्त अस्मिता पुरस्कार तथा देवदास बंजारे की जीवनी ‘आरूग फूल‘ पर माधवराव सप्रे सम्मान मुझे तब मिला जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था। इस बार छत्तीसगढ़ प्रान्त के निवासी लेखक के रूप में यह पहली बार सम्मान मिला जो बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने इस राष्ट्रीय सम्मान के लिए आयोजको के प्रति आभार व्यक्त किया. डॉ. वर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ लोक कथाओं का गढ़ भी है। पंडित माधव राव सप्रे जी ने छत्तीसगढ़ी लोककथा की वृद्धा से प्रेरित होकर हिन्दी की पहली कहानी ‘टोकरी भर मिट्टी‘ की रचना की थी । समारोह के तीसरे दिन 31 दिसम्बर 24 को दुष्यंत संग्रहालय में राष्ट्रीय अलंकरण प्राप्त लेखकों का रचना पाठ संग्रहालय के अध्यक्ष रामराव वामन एवं सचिव करूणा राजूरकर की उपस्थिति में हुआ। इस अवसर पर भोपाल के प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ अगासदिया परिवार के सदस्य और शिक्षाविद स्मिता वर्मा एवं खुशबू उपस्थित रहीं। तीन दिनों तक विभिन्न सत्रों में कार्यक्रम हुआ। राष्ट्रीय अलंकरण प्राप्त डॉ. परदेशीराम वर्मा ने रचनापाठ भी किया। आभार प्रदर्शन करूणा राजूरकर ने किया.