आम आदमी के लिए राहत भरी खबर है. दरअसल, बीते सप्ताह विदेशी बाजारों में कच्चा पामतेल (CPO), पामोलीन और सरसों तेल के दाम टूटने से देश भर के तेल-तिलहन बाजारों में लगभग सभी खाद्यतेल तिलहन कीमतों में चौतरफा गिरावट का रुख रहा.
खाद्य तेल उद्योग, आयातक और किसान काफी परेशान
बाजार सूत्रों ने कहा कि विदेशों में खाद्यतेलों के भाव टूटने से खाद्य तेल उद्योग, आयातक और किसान काफी परेशान हैं. उन्होंने कहा कि पिछले तीन महीनों में जिस सीपीओ का आयात लगभग 2,060 डॉलर प्रति टन के भाव पर आयातकों ने किया हुआ था, अब उसका कांडला बंदरगाह पर मौजूदा भाव 990 डॉलर प्रति टन रह गया है. ऐसे में बाकी तेल तिलहन कीमतों पर भी भारी दबाव है और आयातकों और तेल उद्योग के सामने गहरा संकट खड़ा हो गया है.
खाद्य तेल कारोबार में अटके हुए हैं लेटर ऑफ क्रेडिट रखने वाले कारोबारी
सूत्रों के मुताबिक, थोड़ी बहुत पूंजी वाले कारोबारियों ने अब तेल कारोबार छोड़ने का मन बना लिया है. बैंकों में अपना लेटर ऑफ क्रेडिट रखने वाले कारोबारी ही बस खाद्य तेल कारोबार में अटके हुए हैं. उन्होंने कहा कि इस गिरावट के बावजूद उपभोक्ताओं को गिरावट का यथोचित लाभ नहीं मिल पा रहा है. खुदरा कारोबार में एमआरपी थोक भाव के मुकाबले 40-50 रुपये अधिक रखे जाने से खुदरा व्यापारी ग्राहकों से अधिक कीमत वसूल रहे हैं.
सूत्रों ने कहा कि जब कांडला बंदरगाह पर सीपीओ 88 रुपये प्रति किलो पर बिकेगा तो उसके सामने अगले मार्च में आने वाली सरसों कहां खप पाएगी. आगामी रबी फसल के लिए सरकार द्वारा सरसों की नई फसल के एमएसपी को बढ़ाने की संभावना को देखते हुए सरसों तेल का लागत मूल्य 125-130 रुपये प्रति लीटर रहने की उम्मीद है. सस्ते आयात के सामने देशी तेल तिलहन टिक नहीं पाएंगे. सरकार अधिकतम 20-30 लाख टन ही सरसों खरीद पाएगी लिहाजा बाकी सरसों की खपत पर सवाल खड़े होंगे.
मंडियों में आने वाली है सोयाबीन की भी नई फसल
सूत्रों ने कहा कि हरियाणा और पंजाब की मंडियों में बिनौला की नई फसल आनी शुरु हो गई है. पामोलीन तेल इतना सस्ता है कि इसके आगे बाकी तेल तिलहनों का टिकना असंभव हो गया है. सूरजमुखी तेल भी इस गिरावट के दबाव से बच नहीं पाएगा. अगले 15-20 दिनों में सोयाबीन की भी नई फसल मंडियों में आने वाली है जिससे सोयाबीन में भी आगे और गिरावट आएगी.
सोयाबीन का भी टूटना लगभग तय
पिछले साल किसानों को सोयाबीन के लिए 10,000 रुपये प्रति टन का भाव मिला था. उन्होंने इस बार सोयाबीन के भाव घटकर 7,000 रुपये प्रति टन रह जाने से इसकी बिक्री कम भाव पर नहीं की लेकिन अभी सोयाबीन का भाव 5,200-5,300 रुपये प्रति टन पर आ गया है. इस वजह से किसानों के पास काफी स्टॉक बचा रह गया है. सोयाबीन का भी टूटना लगभग तय है.
खाद्य तेल कारोबारियों के मुताबिक, दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत एमआरपी को लेकर है. थोक में कम मार्जिन पर बिक्री करने के बाद खुदरा कारोबारी एमआरपी की आड़ में इस तेल को लगभग 40-50 रुपये अधिक भाव पर बेचते हैं. जबकि यह एमआरपी वास्तविक लागत से 10-15 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिये. सूत्रों ने कहा कि सरकार के साथ बैठकों में खुदरा कारोबारी 50 रुपये से अधिक एमआरपी में अमूमन 10-15 रुपये तक की कमी करने को राजी हो जाते हैं लेकिन इससे वैश्विक खाद्य तेल कीमतों में आई गिरावट का लाभ ले पाने से उपभोक्ता वंचित ही रहते हैं.