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चक्रव्यूह में रिजर्व बैंक: मुंह बाये खड़ी 5 विशाल चुनौतियों से कैसे निपटेगा RBI

5 से 7 दिसंबर को जब रिजर्व बैंक की अगली क्रेडिट पॉलिसी बैठक होगी, तो उसने सामने टेबल पर 5 बड़ी चुनौतियां होंगी. पहली, अमेरिका में लगातार बढ़ती महंगाई. दूसरी, अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरें. तीसरी, मजबूत डॉलर के चलते कमजोर होता रुपया. चौथी, ग्लोबल मंदी. पांचवीं, भारत में लगातार बढ़ती महंगाई. इस चक्रव्यूह के बीच रिजर्व बैंक को ये देखना होगा कि वो ऐसा क्या फैसला ले, जिससे इन सब बेकाबू घोड़ों की लगाम उसके हाथ में आ जाए.

निकलती दिख रही है. पहले तर्क दिया जाता था कि कच्चे तेल और नेचुरल गैस के दाम ज्यादा है, इसका असर महंगाई पर पड़ रहा है. लेकिन ये तर्क भी अब फेल हो गया है. कल शाम आए आंकड़ों में सितंबर में अमेरिका की रिटेल महंगाई दर 8.2 परसेंट रही है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व का लक्ष्य इसे 2 परसेंट पर रखने का है. यानी टार्गेट से 6 परसेंट ज्यादा. इसके साथ ही सितंबर में कोर महंगाई दर भी अनुमान से ज्यादा 6.6 परसेंट पर आई है. ये 40 साल की ऊंचाई पर है. आने वाले दिनों में भी महंगाई से राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि रूस-यूक्रेन लड़ाई बढ़ ही रही है. इससे दुनिया की एनर्जी संबंधी जरूरतों पर भारी असर पड़ा है. बिना एनर्जी के मैन्युफैक्चरिंग नहीं हो सकती. कम माल बनने का मतलब, कीमतों का बढ़ना यानी महंगाई का बढ़ना है.

फेडरल रिजर्व के हाथ खाली
अमेरिका के महंगाई के आंकड़ों से एक बात तो साफ हो गई कि फेडरल रिजर्व का कोई भी कदम कारगर साबित नहीं हो रहा है. फेडरल रिजर्व इस साल ब्याज दरों में 3 फीसदी की वृद्धि कर चुका है. 1980 के बाद दरों में सबसे तेज बढ़ोतरी की गई है. अनुमान के मुताबिक, फेडरल रिजर्व 1-2 नवंबर की बैठक में तीन चौथाई परसेंट दरें और बढ़ा सकता है. इसके बाद बैठक फिर 13-14 दिसंबर को होगी. जैसे हालात हैं जानकार इसमें भी तीन चौथाई परसेंट दरें बढ़ने का बात कर रहे हैं. यानी अगले डेढ़ महीने में अमेरिका में ब्याज दरें 3 परसेंट से बढ़कर 4.5 परसेंट पर पहुंच जाएंगी. इसका पूरी दुनिया पर गंभीर असर पड़ेगा. फेड से कदमताल रखने के लिए दुनिया के दूसरे बड़े देश ब्याज दरें बढ़ाने पर मजबूर होंगे. यही मजूबरी भारत के सामने भी होगी.

डॉलर मस्त, रुपया पस्त
दरअसल, जैसे ही अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ती हैं, वैसे ही उनका डॉलर उचकने लगता है. डॉलर में मजबूती का सीधा मतलब है दूसरे देशों की करेंसी का भाव गिरना. कोई भी देश अपनी करेंसी को एक लिमिट तक गिरना सहन कर सकता है. भले ही यूरो हो, येन हो, पाउंड हो या फिर हमारा अपना रुपया, सभी में भारी कमजोरी है. कई देशों की करेंसी 20-20 वर्षों के निचले स्तरों पर है. इस साल की शुरुआत में 75 वाला भारतीय रुपया भी 82 के पार निकल गया है. कमजोर करेंसी का सीधा मतलब है कि देश में इंपोर्ट होने वाले सामान की कीमतें बढ़ जाती है, जिससे महंगाई का दानव के रूप और प्रचंड हो जाता है. इसके नियंत्रित करने की चुनौती भई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सामने होगी.

अमेरिका में मंदी, ग्रोथ पर बंदी
अमेरिकी सरकार और फेडरल रिजर्व का सिर्फ एक लक्ष्य है- किसी भी कीमत पर महंगाई कम करना. बाइडेन सरकार और फेडरल रिजर्व दोनों चाहते हैं कि महंगाई कम हो, भले ही इकोनॉमी में थोड़ी मंदी आ जाए. दोनों का मानना है कि ऐसा करके ही गर्म भट्टी की तरह जल रही अर्थव्यवस्था को ठंडा किया जा सकता है. इस कदम के जरिए ही महंगाई के दानव को काबू में लाया जा सकता है. इस साल 4 बार फेडरल रिजर्व दरों में बढ़ोतरी कर चुका है. दूसरे तरीकों से भी कोरोना के वक्त डाली गई नकदी को लगातार वापस लिया जा रहा है, लेकिन काम कुछ नहीं आ रहा. अमेरिकी अर्थव्यवस्था कुछ ठंडी पड़ी है, लेकिन उतनी नहीं जितना कि सरकार चाहती है. दिक्कत ये है कि अमेरिका मंदी में गया तो पूरी दुनिया पर असर होगा.

बेमौसम बारिश से बढ़ेगी महंगाई
महंगाई से तो भारत में भी हालत खराब है. महंगाई का आलम ये है कि रिटेल महंगाई दर 5 महीने की ऊंचाई पर है. भारत में भी खाने-पीने की चीजों की महंगाई चरम पर है. ये 22 महीने की ऊंचाई पर पहुंच गई है. मोटे अनाज की कीमतें करीब 9 साल की ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. आगे भी हालात सुधरने के उम्मीद कम ही है. हाल में हुई बेमौसम बारिश ने खरीफ की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है. सब्जियों की फसल पर भी असर पड़ा है. यानी फलों और सब्जियों के दाम ऊपर ही रहने वाले हैं.

रिजर्व बैंक क्यों मुश्किल में?
इस पृष्ठभूमि के बीच 5-7 दिसंबर के बीच रिजर्व बैंक की बैठक होगी. रिजर्व बैंक ने देश से वादा किया है कि वो महंगाई दर को 2-6 परसेंट के दायरे में रखेंगे. ये लगातार 9वां महीना है, जब महंगाई दर सेंट्रल बैंक के अनुमान से ज्यादा आई है. रिजर्व बैंक का काम ही महंगाई काबू में करना है. सिर्फ इतना नहीं, जब रिजर्व बैंक की बैठक होगी तब अमेरिका में एक बार दरें बढ़ चुकी होंगी और चंद दिनों बाद दूसरी बार बढ़ने वाली होंगी. यानी रिजर्व बैंक को 1.5 परसेंट की बढ़ोतरी को पचाना होगा.