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भारत का वो सीक्रेट द्वीप, जहां जाना प्रतिबंधित, जब भी कोई गया तो आई ये खबर

भारत में एक द्वीप है, जहां जाना वाकई जानलेवा है. सरकार ने इस द्वीप पर किसी के भी जाने पर पाबंदी लगाई हुई है. यहां किसी के लिए भी जाना जानलेवा से कम नहीं. दो – तीन साल पहले एक दो विदेशी चुपचाप वहां गए तो लौटकर जिंदा नहीं आ पाए, केवल वहां से उनकी मृत बॉडी ही लौटी. इस द्वीप का नाम सेंटिनल द्वीप है. आधिकारिक तौर पर भारत सरकार ने यहां किसी के भी जाने पर पाबंदी लगाई हुई है.

वैसे ये बताया जाता है कि अंडमान-निकोबार का ये द्वीप बेहद खूबसूरत है. अभी तीन साल पहले ही भारत घूमने आया एक अमेरिकी नागरिक वहां गया तो आइलैंड के लोगों ने कथित रूप से उसकी हत्या कर दी. यहां सेंटिनेलिस जनजातीय समुदाय के आदिवासी रहते हैं, जिन्हें बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई वहां आए. इस जनजाति को बहुत खतरनाक माना जाता है.

सेंटिनल आइलैंड जाना बैन क्यों है?
अगर आपको बताया जाए कि भारत में ऐसी भी एक जगह है जहां किसी के भी जाने पर रोक है. वहां न सरकारी अफसर जाते हैं, न ही कोई उद्योगपति, न ही आर्मी और न ही पुलिस. यह किंग कॉन्ग फिल्म के स्कल आइलैंड की तरह है, जहां से वापस आना नामुमकिन माना जाता है.

इस द्वीप का नाम है नार्थ सेंटिनल आइलैंड. आसमान से देखने पर यह द्वीप किसी भी आम द्वीप की तरह एकदम शांत दिखने वाला, हरा भरा और खूबसूरत नजर आता है. लेकिन फिर भी यहां कुछ ऐसा है जिससे ना तो पर्यटक और ना ही मछुआरे वहां जाने की हिम्मत जुटा पाते हैं.

प्रशांत महासागर के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर एक ऐसी रहस्यमय आदिम जनजाति रहती है, जिसका आधुनिक युग से कोई लेना- देना नहीं है. वह ना तो किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संपर्क रखते हैं और ना ही किसी को संपर्क रखने देते हैं. जब भी उनका सामना किसी बाहरी व्यक्ति से होता है तो वे हिंसक हो उठते हैं और घातक हमले करते हैं.

साल 2006 में कुछ लोग मछुआरे गलती से इस आइलैंड पर पहुंच गए थे. इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, उन्हें अपनी जान गवांनी पड़ी. इस जनजाति के लोग आग के तीर चलाने में माहिर माने जाते हैं, इसलिए अपनी सीमा क्षेत्र में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों पर भी इन गोलों से हमले करते हैं.
कितना पुराना है ये द्वीप
बंगाल की खाड़ी में बसा ये द्वीप यूं तो भारत का ही हिस्सा है, लेकिन यह हमेशा से ही ऐसी पहेली बना रहा है, जिसे कोई भी सुलझा नहीं पाया. ऐसा माना जाता है कि इस द्वीप पर रहने वाली जनजाति का अस्तित्व 60,000 वर्ष पुराना है. लेकिन वर्तमान में इस जनजाति की जनसंख्या कितनी है, यह अभी तक सामने नहीं आया है. एक अनुमान के अनुसार इस जनजाति से संबंधित लोगों की संख्या कुछ दर्जन से लेकर 100-200 तक हो सकती है.

यहां के लोगों को बाहरी हस्तक्षेप पसंद नहीं
किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को ये लोग बर्दाश्त नहीं करते, इसलिए इनके बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी जैसे इनके रिवाज, इनकी भाषा, इनका रहन-सहन आदि की किसी को नहीं.

साल 2004 में आई भयंकर सूनामी के बाद अंडमान द्वीप तबाह हो गए थे. यह द्वीप भी अंडमान द्वीपों की श्रृंखला का ही हिस्सा है, लेकिन सुनामी का इस जनजाति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, ये बात भी अभी तक कोई नहीं जान पाया है. सुनामी के बाद जब भारतीय तटरक्षक दल ने वहां जाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने हेलिकॉप्टरों पर आगे के तीर से हमले किए, जिसके बाद वहां पहुंचने के प्रयास रोक दिए गए.

नार्थ सेंटिनल द्वीप का इतिहास
अक्सर इस जनजाति के लोगों को पाषाण काल की जनजाति भी कहा जाता है, क्योंकि तब से लेकर अब तक इनके भीतर किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं आया है. शायद इसकी वजह इनके भीतर ग्रहणशीलता की कमी और बाहरी दुनिया से दूरी रखने का स्वभाव है. यह जनजाति विश्व की सबसे ज्यादा खतरनाक और बेहद अलग-थलग रहने वाली जनजाति है. इतना ही नहीं यह एकमात्र ऐसी जनजाति है, जिनके जीवन या अंदरूनी मामलों में भारत सरकार भी दखल नहीं देती है.

इनमें नहीं है रोग प्रतिरोधक क्षमता
भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए ताकि इस जनजाति के लोगों के हितों के लिए काम किया जाए और इनके जीवन को सुधारा जाए.
आदिवासी जनजातियों के लिए ही काम करने वाली सर्वाइवल इंटरनेशनल नामक संस्था का कहना है कि नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर रहने वाली जनजाति, इस ग्रह की सबसे कमजोर जनजाति है. उनके भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता लगभग ना के बराबर है. मामूली सी बीमारी की वजह से भी उनकी मौत हो सकती है.

अन्य लोगों से पूरी तरह अलग होने की वजह से इन लोगों का संपर्क बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ है, इसलिए महामारी में इनकी जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा है.

कभी कभी कुछ लोग बचकर भी भाग पाए
अंडमान और निकोबार प्रशासन ने 2005 में कहा था कि उनका सेंटीनेलिस की जीवनशैली या आवास में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है और वे उनके साथ आगे संपर्क करने या द्वीप पर कानून लागू करने में रुचि नहीं रखते.

सन 1981 में एक भटकी हुई नौका इस आइलैंड के करीब पहुंच गई थी. उस नांव में बैठे लोगों ने बताया था कि कुछ लोग किनारों पर तीर-कमान और भाले लेकर खड़े थे, लेकिन किसी तरह हम वहां से बचकर निकलने में सफल रहे.