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‘कोई सुनने वाला नहीं था…’ EC में नियुक्ति पर बोले पूर्व CEC, कहा- सरकार ने जल्दबाजी की

चुनाव आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति ने विवाद खड़ा कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल देखना चाहता है और इस प्रक्रिया को शीर्ष कोर्ट ने ‘लाइटनिंग फास्ट (बहुत जल्दबाजी में)’ करार दिया है. हालांकि अभी शीर्ष कोर्ट इस मामले को देख रहा है, लेकिन पूर्व चुनाव आयुक्तों ने इस बात के पक्ष में दलील दी है कि चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार होना चाहिए.

1996 से 2001 के बीच 6 साल के कार्यकाल के लिए चीफ इलेक्शन कमिश्नर के तौर पर सेवा देने वाले मनोहर सिंह गिल ने कहा कि वह अपने कार्यकाल के बाद से ही लगातार इस तरह की मांग कर रहे हैं. News18 से बातचीत में गिल ने कहा, ‘चुनाव आयोग में नियुक्तियों का सवाल है और इसकी समीक्षा करके सुलझाया जाना चाहिए. मैं पूरे 6 साल के सीईसी था, मैंने भी इस तरह की नियुक्तियों (चुनाव आयोग में नियुक्ति) का मुद्दा उठाया था. लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था.’

उन्होंने कहा कि ‘मुझे खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले को देख रहा है.’ गिल ने कहा, ‘अब कोर्ट को इस मामले को सुलझाने दीजिए. मुझे खुशी है कि ये मामला अब एक सुलझा हुआ परिणाम देगा. स्थितियां बदलेंगी. मैं देख सकता हूं. सुप्रीम कोर्ट कुछ करेगा.’

‘जल्दबाजी क्यों है?’
2010 से 2012 के बीच बतौर चीफ इलेक्शन कमिश्नर सेवा देने वाले शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी ने भी गिल की तरह ही अपने विचार साझा किए हैं. उन्होंने कहा, ‘गोयल को जल्दबाजी में नियुक्ति दी गई है, क्योंकि सरकार को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट नियुक्ति के बारे में नई गाइडलाइन जारी कर सकता है.’

कुरैशी ने न्यूज18 से कहा, ‘चुनाव आयोग में नियुक्तियों का कोई नियम नहीं है. सरकार राष्ट्रपति को नाम सुझाती है और इसी के जरिए खाली पड़े पदों को भरा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में दायर मुख्य याचिका चुनाव आयोग में नियुक्तियों को लेकर नियम की मांग करती है. सरकार ने जल्दबाजी इसलिए दिखाई क्योंकि उसे महसूस हुआ कि अगर नियम कानून बन गए तो नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर सलाह की जरूरत हो सकती है.’ कुरैशी ने साथ ही यह भी कहा कि गोयल की नियुक्ति ‘लाइटनिंग फास्ट (बहुत जल्दबाजी)’ थी, क्योंकि सरकार खुद को बचाना चाहती है.

एक और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि ‘मेरे संज्ञान में गोयल की नियुक्ति जैसा कोई मामला पहले देखने में नहीं आया, जब इतनी जल्दबाजी में कोई नियुक्ति की गई हो.’

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, ‘यह पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग में नियुक्ति पर सवाल उठे हों. पहले भी कई बार सवाल उठे हैं. फैक्ट ये है कि सिर्फ चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि अन्य संवैधानिक संस्थाओं में भी नियुक्ति को लेकर सवाल उठे हैं और लोकतंत्र में ये सामान्य बात है. ये मामला अब न्यायालय के अधीन है. मैं कौन होता हूं इस पर टिप्पणी करने वाला, लेकिन मैं ऐसा कोई भी वाकया याद नहीं कर पा रहा हूं जब रातों रात इस तरह की नियुक्ति की गई हो. और वह भी एक ऐसे पद पर जो लंबे समय से खाली हो.’