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नए साल में डॉक्टरों और दवा कंपनियों के गठजोड़ पर मोदी सरकार करने जा रही है सख्ती!

मोदी सरकार (Modi Government) नए साल में मार्केटिंग के नाम पर दवा कंपनयों और डॉक्टरों के बीच होने वाले सांठ-गांठ (Pharmaceutical Companies and Doctors Nexus) पर अब सख्त रुख अख्तियार करने जा रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) की मानें तो इन कंपनियों को अब डॉक्टरों को दिए जाने वाले गिफ्ट (Gift) की जानकारी देनी होगी. स्वास्थ्य मंत्रालय की की सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार दवा कंपनियों के लिए मार्केटिंग प्रैक्टिस के यूनिफॉर्म कोड यानी यूसीपीएमपी में बदलाव करने जा रही है. केंद्र सरकार ने पिछले साल नीति आयोग के सदस्य डॉ बीके पॉल की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया था. इस कमिटी में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ-साथ केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष भी शामिल हैं.

समिति से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि समिति के बीच इस बात को लेकर सहमति बन गई है कि फार्मा कंपनियों को मुफ्त उपहार लेने वाले डॉक्टरों की अब सूची देनी होगी. बता दें कि मौजूदा दौर में फार्मा कंपनियां दवा की मार्केटिंग का खर्च एकमुश्त बैलेंस सीट में दिखाती है. ऐसे में अब केंद्र सरकार स्वास्थ्य से जुड़े मामलों पर होने वाले खर्च पर पैनी नजर रख रही है, लेकिन मुफ्त उपहारों को अलग श्रेणी में दर्ज करने से जांच एजेंसियों को कार्रवाई करने में आसानी होगी.

दवा कंपनियों पर नए साल में होगी सख्ती
फार्मा उद्योग से जुड़े विशाल कुमार कहते हैं, ‘फार्मा कंपनियां दवा की मार्केटिंग का खर्च आम लोगों से ही वसूल करती है. डॉक्टरों को कई तरह के गिफ्ट देने का प्रलोभन में फंसाया जाता है. डॉक्टरों पर उन कंपनियों के खास तरह की दवा पर्चे पर लिखने का दवाब बढ़ता है. इससे डॉक्टरों के द्वारा मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होाता है. दवा विक्रेता जेनेरिक दवा नहीं बेचना चाहते हैं, क्योंकि उस पर उनका मार्जिन बहुत कम आता है. लेकिन, ब्रांडेड दवा बेचने पर उनको 40-70 प्रतिशत तक मुनाफा होता है. दवा कंपनी से जो कमीशन मिलता है, उसमें डॉक्टर और दवा विक्रेता दोनों का हिस्सा होता है.’