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बजट नॉलेज: कई तरह के होते हैं यूनियन बजट, समझिए इनमें फर्क, भारत के लिए कौन सा सबसे बेहतर

1 फरवरी को देश का आम बजट (Budget 2023) संसद के सामने पेश किया जाएगा. इसको लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं. बजट सरकार द्वारा पेश किया जाने वाला 1 साल का वित्तीय लेखा-जोखा होता है. साथ ही इसमें बताया जाता है कि सरकार आने वाले समय में कितना खर्च करेगी, कहां-कहां करेगी और उसकी कमाई कितनी हुई है. इसके अलावा इनकम टैक्स हुआ GST से संबंधित अगर कोई संशोधन है तो सरकार बजट के समय वह भी लोगों के सामने रहती है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि बजट केवल एक तरह का नहीं होता है. आम बजट कुल 3 प्रकार का होता है. आज हम आपको इन तीनों प्रकार के बजट के बारे में बताएंगे. पहले जान लेते हैं कि 3 बजट कौन से होते हैं. पहला होता है बैलेंस्ड बजट, दूसरा होता है सरप्लस बजट और तीसरा होता है डेफिसिट बजट. आइए अब इनके बारे में विस्तार से जानते हैं.

संतुलित बजट (बैलेंस्ड बजट)
आम बजट को संतुलित बजट तब कहा जाता है जब अनुमानित सरकारी खर्च किसी उस वित्तीय वर्ष में अपेक्षित सरकारी आय के बराबर होता है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस प्रकार का बजट “साधनों के भीतर रहने” के सिद्धांत पर आधारित है. इसका मतलब है कि सरकार का खर्च उनके राजस्व से अधिक नहीं होना चाहिए. हालांकि, एक संतुलित अर्थव्यवस्था प्राप्त करने और राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के लिए संतुलित बजट वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित नहीं करता है. बेशक यह यह सुनिश्चित करता है कि सरकार अविवेकपूर्ण व्यय से दूर रहे, लेकिन यह सरकार को लोक कल्याण पर खर्च करने से भी रोकता है. साथ ही

सरप्लस बजट
एक सरप्लस बजट वह होता है जब अपेक्षित सरकारी राजस्व किसी विशेष वित्तीय वर्ष में अनुमानित सरकारी व्यय से अधिक हो. इसका मतलब यह है कि लगाए गए करों से सरकार की कमाई उस राशि से अधिक है जो सरकार सार्वजनिक कल्याण पर खर्च करती है. एक अधिशेष बजट किसी देश की वित्तीय संपन्नता को दर्शाता है. कुल मांग को कम करने के लिए इस तरह के बजट को मुद्रास्फीति के समय लागू किया जा सकता है.

घाटे का बजट (डेफिसिट बजट)
एक सरकारी बजट को घाटे का बजट तब कहा जाता है जब अनुमानित सरकारी व्यय किसी विशेष वित्तीय वर्ष में अपेक्षित सरकारी राजस्व से अधिक हो. इस प्रकार का बजट भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए सबसे उपयुक्त है. मंदी के समय विशेष रूप से सहायक यह बजट अतिरिक्त मांग उत्पन्न करने और आर्थिक विकास की दर को बढ़ावा देने में मदद करता है. यहां सरकार रोजगार दर में सुधार के लिए अत्यधिक व्यय करती है. इससे माल और सेवाएं की मांग बढ़ती है और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद होती है. सरकार इस राशि को सार्वजनिक उधारी (सरकारी बांड जारी करके) या अपने संचित आरक्षित अधिशेष से निकालकर कवर करती है.