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सामाजिक सेवा क्षेत्र पर लगातार बढ़ा खर्च, जारी वित्त वर्ष में अब 21 लाख करोड़ रुपये का सरकारी व्यय

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने आज संसद में आर्थिक सर्वेक्षण (India Economic Survey 2023) रखकर सरकार के खर्चों का हिसाब भी दिया. आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि जारी वित्त वर्ष में केंद्र व राज्य सरकारों ने अब तक सामाजिक कार्यों पर संयुक्त रूप से 21.3 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए. इस खर्च में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. यह जारी वित्त वर्ष में कुल सरकारी खर्च का 26.6 फीसदी रहने का अनुमान है. जबकि बीते वित्त वर्ष यह 26.1 फीसदी था.

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2016 के बाद से इसमें वृद्धि दर्ज की गई और ये 25 फीसदी से बढ़कर 27 फीसदी के करीब पहुंच गया है. वित्त वर्ष 2017-18 में ये कुल खर्च का 25.2 फीसदी, 2018-19 में 25.4 फीसदी, 2019-20 में 25.2 फीसदी, 2020-21 में 23.3 फीसदी, 2021-22 में 26.1 फीसदी और 2022-23 में इसके 26.6 फीसदी रहने का अनुमान है.

कहां हुआ कितना खर्च
केंद्र व राज्य सरकारों ने संयुक्त रूप से 2021-22 में शिक्षा पर 681396 करोड़ रुपये खर्च किए. जिसके इस वित्त वर्ष में बढ़कर 757138 करोड़ रुपये पर पहुंचने की संभावना है. इसके बाद स्वास्थ्य पर पिछले वित्त वर्ष 516427 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस बार ये 548855 करोड़ रुपये पर पहुंचने का अनुमान है. अन्य सामाजिक सेवा कार्यों पर दोनों सरकारों ने पिछले वित्त वर्ष 746191 करोड़ रुपये खर्च किए थे जो इस बार बढ़कर 826065 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. जीडीपी के संदर्भ में देखें तो पिछले वित्त वर्ष सामाजिक सेवा कार्यों पर 8.2 फीसदी रकम खर्च खर्च हुई थी जिसके इस बार बढ़कर 8.3 फीसदी पहुंचने की संभावना है.

मानव विकास में पिछडे़
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि यूएनडीपी के आंकड़ों के अनुसार भारत मानव विकास सूचकांक (HDI) में 2021 में 132वें स्थान पर था. देश का एचडीआई मान 0.633 फीसदी था जो 2019 के 0.645 से कम था. हालांकि, भारत का एचडीआई मान दक्षिण एशिया के औसत मानव विकास मान से अधिक है. आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सूची में शामिल 90 फीसदी देशों ने अपने मानव विकास सूचकांक में 2020 या 2021 में गिरावट दर्ज की थी. इसका मतलब है कि ऐसा केवल भारत में नहीं बल्कि दुनियाभर के देशों में देखने को मिला था. भारत लैंगिक असमानता के पैरामीटर पर वैश्विक औसत 0.465 के काफी करीब है जबकि दक्षिण एशियाई क्षेत्र के औसत मान से बेहतर है.