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सभी मार्ग भारत के सुनहरे आर्थिक भविष्य की ओर ले जाते हैं

आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर लाल किले से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक पंच प्राण अपनाने की बात कही थी। इनमें से पहला पंच प्राण विकसित भारत बनाने का लक्ष्य है. इस लक्ष्य को साकार करने के लिए, इसके रास्ते बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास से होकर गुजरती है.

2014 से, GOI ने रणनीतिक निवेश प्रारंभ किया है जो भारत में व्यवसाय शुरू करना, उसे चलाना और सफल होना संभव बनाता है. इसमें से एक बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में हुए विकास सर्वाधिक उल्लेखनीय उपलब्धि है. भारत 63.73 लाख किलोमीटर के साथ दुनिया में दूसरे सबसे बडे सड़क संजाल (रोड नेटवर्क) का दावा करता है और भारत के पास तेज़ गति से सड़क विकास करने का विश्व रिकॉर्ड भी है. भारत में सड़कों का निर्माण प्रति दिन 38 किलोमीटर की दर से हो रही हैं और इस दर में सुधार होना तय है. देश में सभी मालों (गुड्स) का 64.5% यातायात और भारत के कुल यात्री का 90% यातायात हमारी सड़कें के माध्यम होती हैं.

यह विकास ‘गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान’ नामक एक बड़ी बुनियादी ढांचा विकास योजना का हिस्सा है. किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बुनियादी ढांचा का विकास महत्वपूर्ण है. सड़कें, रेलवे, वायुमार्ग और जलमार्ग बाहरी दुनिया के साथ संपर्क बढ़ाने को सक्षम बनाते हैं, व्यापार की सुविधा देते हैं और उन क्षेत्रों में समृद्धि लाते हैं जिनसे वे जुड़ते हैं. बुनियादी ढांचे का उच्च गुणक (मल्टीप्लायर) प्रभाव होता है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी का अनुमानित गुणक (मल्टीप्लायर) 2.5 और 3.5 के बीच यानी बुनियादी ढांचे पर खर्च किए गए प्रत्येक रुपये के लिए, हम GDP में 2.5 से 3.5 रुपये की वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं.

बेशक, यह पैसा कहां खर्च किया जाता है, यह सर्वोपरि है. भारत के ‘गति शक्ति’ कार्यक्रम में 81 उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं (प्रोजेक्ट) की सूची समेकित की गई है, जिनमें से सड़क बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (रोड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट) को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी. प्रमुख राजमार्ग परियोजनाओं (हाइवे प्रोजेक्ट) में दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे (1,350 किलोमीटर), अमृतसर-जामनगर एक्सप्रेसवे (1,257 किलोमीटर) और सहारनपुर-देहरादून एक्सप्रेसवे (210 किलोमीटर) शामिल हैं.

जैसा कि सभी चीजों के साथ होता है, क्रियान्वयन महत्वपूर्ण होगा. इतनी बड़ी परियोजना के साथ, वेस्टेज (अपव्यय) और रीवर्क (दोबारा से काम करना) कम से कम रखना महत्वपूर्ण है और यही वह जगह है जहां गुणवत्ता मानक (क्वालिटी स्टैंडर्ड) आते हैं. उच्च गुणवत्ता वाले काम (आउटपुट) और परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए एक मजबूत परफॉर्मेंस मॉनिटरिंग फ्रेमवर्क (प्रदर्शन निगरानी ढांचे) की आवश्यकता होती है. यही कारण है कि क्वालिटी काउंसिल ऑफ़ इंडिया (QCI) पूरे ईकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) के साथ काम कर रही है: क्वालिटी स्टैंडर्ड सेटिंग (गुणवत्ता मानकों की स्थापना), ऑडिटर (लेखा परीक्षकों) और कंसल्टेंट (सलाहकारों) को प्रशिक्षित करना और ऑब्जेक्टिव असेसमेंट (वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन) के लिए रूपरेखा तैयार करना.