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हेल्‍थ इंश्‍योरेंस लेते वक्‍त जरूर समझ लें सब लिमिट का फंडा, नहीं तो आधा ही होगा फायदा, जेब से भरने पड़ेंगे पैसे

आज हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी (Health Insurance Policy) हर व्‍यक्ति की अहम जरूरत बन चुकी है. इलाज पर खर्च बहुत बढ़ गया है. लोग बीमारियों का शिकार भी ज्‍यादा होने लगे हैं. ऐसी स्थिति में स्‍वास्‍थ्‍य बीमा पॉलिसी की अहमियत और आवश्‍यकता, दोनों ही पहले से कहीं ज्‍यादा हो गई हैं. आपको भी अगर बीमा पॉलिसी लेनी है तो पॉलिसी लेने से पहले नियम-शर्तों और बीमा शब्‍दावली को जरूर ढ़ंग से समझ लें. ऐसा न करने पर आप पॉलिसी का पूरा लाभ नहीं ले पाएंगे. सब लिमिट भी एक ऐसा ही नियम है, जिसे जानना बेहद जरूरी है. ज्‍यादातर लोग पॉलिसी लेते वक्‍त सब लिमिट की जानकारी नहीं लेते हैं और फिर क्‍लेम सेटलमेंट के वक्‍त पछताते हैं.

सब-लिमिट एक बीमा पॉलिसी में प्रदान की गई कवरेज की राशि पर एक कैप है. स्पष्ट रूप से यह कैप पॉलिसी में एक निश्चित राशि के रूप में व्यक्त की जाती है. कुछ बीमारियों या उपचार के साथ-साथ कुछ सेवाओं के लिए सब लिमिट रखी जाती हैं. कई बार सब लिमिट को सम-एश्‍योर्ड के प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है तो कई बार एक निश्चित राशि के रूप में इसे बताया जाता है.

ऐसे समझें सब लिमिट का फंडा
मान लें कि आपकी पॉलिसी की बीमा राशि 5 लाख है. लेकिन पॉलिसी में किसी बीमारी के इलाज के लिए सब लिमिट रखी है. सब लिमिट अगर 50,000 रुपये है और आपका खर्च बीमारी के इलाज पर 100000 रुपये हो गया है. इस स्थिति में बीमा कंपनी केवल 50,000 रुपये ही देगी. क्‍योंकि पॉलिसी में उसने पहले ही उस बीमारी के इलाज की सब लिमिट का उल्‍लेख कर रखा था. अब भले ही आपकी पॉलिसी का सम-एश्‍योर्ड 5 लाख रुपये है, परंतु सब लिमिट की वजह से आपको बाकी के बचे 50,000 रुपये अपनी जेब से देने होंगे.

सेवाओं पर भी सब लिमिट
बीमारियों ही नहीं कुछ सेवाओं पर भी बीमा कंपनियां सब लिमिट रखती हैं. आमतौर पर यह अस्‍पताल के कमरे के किराए, आईसीयू के चार्जेज, एम्बुलेंस फीस या ओपीडी फीस सहित बहुत सी सर्विसेज पर लागू होती है. जैसे बीमा कंपनी अस्‍पताल के कमरे के किराए पर सब लिमिट रखते हुए शर्त रख सकती है कि वह किराए के रूप में केवल 3000 रुपये ही प्रतिदिन चुकाएगी. अगर आप अस्‍पताल में ऐसा कमरा लेते हैं, जिसका किराया 5 हजार रुपये है तो फिर ऊपर के दो हजार रुपये आपको अपनी जेब से चुकाने होंगे.