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भारतीय वैज्ञानिकों को मिले चंद्रमा के विकास के अहम साक्ष्य, जानें कैसे हुई उत्पति

अहमदाबाद में फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों को चंद्रमा की विकासवादी प्रक्रिया के अनोखे सबूत मिले हैं. उन्हें 3.9 से 3.3 अरब साल पहले चंद्रमा पर पिघलने की प्रक्रिया में मौलिक बदलाव के संकेत मिले हैं. नए साक्ष्य के अनुसार चंद्रमा के आंतरिक भाग बेसाल्ट मैग्माटिज्म के रूप में पिघल गया है, जो ऊष्मीय विकास का प्रमाण है. ये साक्ष्य अपोलो मिशन (Appolo Mission to Moon By USA) द्वारा चंद्रमा से पृथ्वी पर लाये गए बेसाल्ट के नमूनों को चुनौती देते हैं. 

भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने चंद्र उल्कापिंड असुका-881757 के नमूनों (यह 1988 में अंटार्कटिका में पाया गया था), चंद्र उल्कापिंड कालाहारी-009 (यह 1999 में दक्षिण अफ्रीका में कालाहारी रेगिस्तान में पाया गया था) और रूसी लूना-24 मिशन द्वारा एकत्रित किए नमूने का अध्ययन करने के बाद चंद्रमा के विकास का नया साक्ष्य प्रस्तुत किया है. वैज्ञानिकों को पुराने चंद्र उल्कापिंडों के अध्ययन से मालूम चला है कि उनमें KREEP (पोटेशियम, दुर्लभ-पृथ्वी तत्व और फास्फोरस) की बहुत कम मात्रा थी. इससे पता चलता है कि ये उल्कापिंड चंद्रमा पर प्रोसेलरम KREEP टेरान (PKT) के अलग क्षेत्र से आए होंगे और चंद्रमा पर इनके पिघलने के अन्य तरीके हो सकते हैं.

वैज्ञानिकों की खोज से प्राप्त जानकारियां विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हुई थीं. मिशन से प्राप्त साक्ष्य से चंद्रमा के उष्मीय विकास की जानकारी मिलती है. वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि बेसाल्ट का मुख्य स्रोत चंद्र पर पिघले मैग्मा से हुई होगा जो प्रारंभ में पिघलने के बाद जमी होगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का मानना है कि ये बेसाल्ट, पृथ्वी और मंगल जैसे अन्य स्थलीय पिंडों के समान, चंद्रमा में कम दबाव के कारण पिघले होंगे.

इस खोज से मालूम चलता है कि चंद्रमा का आंतरिक भाग बेसाल्ट मैग्माटिज्म के रूप में 4.3-3.9 बिलियन वर्ष की शुरुआत से बदलना शुरू हुआ होगा जबकि ये प्रक्रिया पिकेटी क्षेत्र में 3.8-3.0 बिलियन वर्ष पहले शुरू हुई.