रायपुर .पहले सिनेमाघर के बाहर दिखाई जा रही फिल्म के गानों की चोपडी बिका करती थी एक आने में। 1950 से 1980 के दशक में सिनेमा घरो के बाहर ज्यादातर उसी फिल्म के गानो की पाप्लेट जैसी पुस्तिका बेचने वाले अक्सर दिख जाते थे जिसमे गानो की लिरिक्स उसकी पूरी जानकारी संगीतकार ,गीतकार के नाम के साथ छपी होती थी कभी कभी फिल्म का कहानी का सारांश और सितारों का नाम भी लिखा मिल जाता था इसे साधारण शब्दों की भाषा में ” गानो की चोपड़ी ” कहते थे ……बच्चे इसे अंताक्षरी खेलने के लिए इस्तेमाल करते थे फिल्म ‘काला बाजार (1960 )’ में भी देवानंद को फिल्म’ तलाक’ के गानो की ‘चोपड़ी ‘ बेचते दिखाया गया है ।आज भी कई पुराने सिनेमा प्रेमियों ने ऐसी कई ” गानो की चोपड़ी ” को सहेज कर रखा है।
Add Comment