भारत में कार्यों के आधार पर बैंकों को 4 श्रेणियों में डाला जाता है. कमर्शियल बैंक, लघु वित्तीय बैंक (Small Finance Bank), पेमेंट बैंक और को-ऑपरेटिव बैंक. आज हम पहले 2 तरह के बैंकों की ही बात करेंगे जो लगभग एक जैसा ही काम करते हैं लेकिन फिर उनके कुछ बुनियादी अंतर हैं. पहले इनकी कुछ समानताएं देख लेते हैं. कमर्शियल बैंक की तरह की स्मॉल फाइनेंस बैंक भी लोन मुहैया करा सकते हैं. दोनों को ही आरबीआई द्वारा रेग्युलेट किया जाता है.
भले ही दोनों तरह के बैंकों को लोन मुहैया कराने की आजादी होती है लेकिन स्मॉल फाइनेंस बैंक हर तरह का कर्ज नहीं दे सकते हैं. यही इन दोनों के बीच मुख्य अंतर भी है. कमर्शियल बैंक किसी को भी और किसी भी तरह का लोन दे सकते हैं. बेशक उन्हें आरबीआई रेग्युलेट करता है लेकिन फिर भी वह अपनी नीतियां खुद बनाने के लिए काफी हद तक स्वतंत्र होते हैं. SBI, HDFC व ICICI कमर्शियल बैंक के उदाहरण हैं. दूसरी ओर स्मॉल फाइनेंस बैंक छोटे बिजनेस, किसानों, एमएसएमई आदि को लोन देने पर केंद्रित रहते हैं. ये स्मॉल बिजनेस लोन के अलावा पर्सनल लोन, गोल्ड लोन और व्हीकल लोन दे सकते हैं
अंतर और भी हैं
कमर्शियल बैंकों को शुरू करने के लिए बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है. वहीं, स्मॉल फाइनेंस बैंकों को तुलनात्मक रूप से कम पूंजी के साथ शुरू किया जा सकता है. स्मॉल फाइनेंस बैंकों को 100 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ भी शुरू किया जा सकता है. कमर्शियल बैंक जहां हर किसी को लोन देते है तो स्मॉल फाइनेंस बैंकों का फोकस छोटे लोन लेने वाले व्यापारी, असंगठित क्षेत्र के लोग और एमएसएमई पर होता है. स्मॉल फाइनेंस बैंक 50 लाख रुपये से ज्यादा का लोन नहीं दे सकते है. वहीं, कमर्शियल बैंकों के लिए ऐसी कोई सीमा नहीं होती है. SFB को परिकल्पना ही वित्तीय सेवाओं को ऐसे इलाकों तक पहुंचाने के लिए हुई थी जहां तक मुख्यधारा के कमर्शियल बैंक नहीं पहुंच पाए हैं.
पैसा कहां ज्यादा सेफ?
चूंकि दोनों ही तरह के बैंकों को आरबीआई द्वारा रेग्युलेट किया जाता है तो ऐसे में कहीं भी पैसा डूबने का बहुत कम होता है. हालांकि, बड़े कमर्शियल बैंकों जैसे एसबीआई, आईसीआईआई और एचडीएफसी सबसे सुरक्षित भारतीय बैंक हैं. किसी भी आपातकालीन स्थिति में केंद्र खुद ही इनके बचाव में आ सकता है.