प्रॉपर्टी खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. पहला यह कि आपको क्या-क्या करना है और दूसरा कि क्या नहीं करना है. कई लोग जमीन या घर लेते समय कुछ पैसे बचाने के लिए रजिस्ट्रेशन या रजिस्ट्री नहीं कराते हैं. इसके बदले में वह पावर ऑफ अटार्नी अपने नाम करवा लेते हैं. यह फैसला अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित हो सकता है. पावर ऑफ अटॉर्नी का काम आपको प्रॉपर्टी के संबंध में कुछ अधिकार देना है, मालिकाना हक नहीं.
पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए किसी प्रॉपर्टी का मालिक किसी को अपनी संपत्ति बेचने का अधिकार सौंप देता है. इसका मतलब यह नहीं हुआ कि वह प्रॉपर्टी ही उसकी हो गई. पावर ऑफ अटॉर्नी जिसके नाम पर बनाई जाती है उसे एजेंट और जो बनवाता है उसे प्रिंसिपल कहते हैं. मान लीजिए अगर किसी जमीन के मालिक ने आपके नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी बनवाई तो आप उसके एजेंट हुए और वह मालिक हुआ प्रिंसिपल. आप दोनों उस जमीन को लेकर जो भी फैसला लेंगे वह मान्य होगा. आपको उस जमीन की बिक्री का पूरा अधिकार होगा.
तो परेशानी कहां है?
पेशानी ये है कि प्रिंसिपल जब चाहें तब इस पावर ऑफ अटॉर्नी को निरस्त कर सकता है. यही नहीं, अगर प्रिसिंपल की मौत हो जाती है तब भी पावर ऑफ अटॉर्नी निरस्त हो जाएगी. अगर आपने किसी से घर खरीदा है और कुछ पैसे बचाने के लिए केवल पावर ऑफ अटॉर्नी ही अपने नाम कराई तो उस घर पर मालिकाना हक आपका नहीं हुआ. अगर उस शख्स ने पावर ऑफ अटॉर्नी को खत्म कर दिया तो वह घर आपके हाथ से चला जाएगा. आप कोर्ट में जाकर केस लड़ सकते हैं लेकिन इसका लाभ आपको मिले, ऐसा होने की संभावना कम है. ऐसा इसलिए क्योंकि रजिस्ट्रेशन न कराकर सीधे तौर पर सरकार से पैसे बचाने का अवैध प्रयास किया गया है.
कैसे बचाते हैं पैसा
दरअसल, जब आप मकान या जमीन खरीदते हैं तो आपको उसका रजिस्ट्रेशन यानी रजिस्ट्री करानी होती है. इसके लिए आपको सरकार को स्टांप ड्यूटी देनी होती है. इसी स्टांप ड्यूटी से बचने के लिए लोग केवल पावर ऑफ अटॉर्नी अपने नाम कराते हैं. यहां भी खरीदार को स्टांप ड्यूटी देनी होती है लेकिन वह रजिस्ट्री के मुकाबले काफी कम होती है. वहीं, देश के कई राज्यों में तो यह शून्य ही है.