हाइब्रिड सौर ग्रहण निश्चित तौर पर खासा दुर्लभ होता है. सूर्यग्रहण तो तकरीबन साल में कई बार देखने को मिल जाते हैं लेकिन हाइब्रिड सूर्य ग्रहण जिसे निंगालू या संकर सूर्य ग्रहण भी कहते हैं, वो हर दशक में केवल एक बार ही होता है, दरअसल ये ग्रहों के बीच परफेक्ट गणितीय दूरी की स्थिति है. मतलब चंद्रमा और सूर्य की पृथ्वी से दूरी जब एक निश्चित अनुपात में आ जाती है तो बीच में चंद्रमा आ जाता है तो ये खगोलीय घटना होती है.
जब चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की कुल दूरी तुलनात्मक तौर पर कम होती है और चंद्रमा का बीच का हिस्सा पृथ्वी की ओर होता है तो केंद्रीय छाया के सभी मार्गों पर हाइब्रिड सूर्य ग्रहण की स्थितियां बनती हैं. ऐसे में चंद्रमा की तीन स्थितियों में पृथ्वी में कम से कम तीन हिस्सों में अलग अलग समय पर चांद की आंशिक छाया पड़ती है. इस चित्र से भी जाहिर हो रहा है कि चांद जब 20 अप्रैल को अपनी कक्षा में जब गुजरेगा तो उसकी तीन स्थितियां अलग अलग समय पर पृथ्वी के इन हिस्सों में छाया डालेंगी. आमतौर पर ये हिस्से आस्ट्रेलिया, पूर्वी इंडोनेशिया और पूर्वी तिमोर होंगे.
कुंडलाकार सौर ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी से अपेक्षाकृत दूर होता है, इसलिए छाया के पृथ्वी तक पहुंचने से पहले ही अंटुम्ब्रा बन जाता है, यहां तक कि सीधे चंद्रमा के सामने वाले स्थानों में भी. सूर्य और चंद्रमा दोनों की दूरी लगातार बदलती रहती है. इसलिए हाइब्रिड सूर्यग्रहण की स्थिति बहुत मुश्किल से ही बनती है.
हाइब्रिड सूर्य ग्रहण में चंद्रमा के गर्भ और अंटुम्ब्रा के सबसे पतले हिस्से शामिल होते हैं. चंद्रमा जहां सूर्य के सामने केंद्रीय रूप से स्थित होता है, और इसके आमतौर पर छोटा होने के कारण पृथ्वी का आंशिक हिस्सा ही तीन किनारों पर प्रभावित होता है. जैसा कि ऊपर दिए गए चित्रों में एक से जाहिर भी होता है.