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लोकसभा के रण में विपक्षी एकता की कवायद, संसद भवन का विवाद बना नया हथियार

कर्नाटक के हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी एकता की कोशिशों को नया बल मिलता दिख रहा है. इसका ताज़ा उदाहरण नए संसद भवन के उद्घाटन को छिड़े विवाद में दिख रहा है. यह सब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा 28 मई को रिकॉर्ड समय में बनाए गए नए भवन का उद्घाटन करने की घोषणा के साथ शुरू हुआ. इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विरोध शुरू हो गया.

सबसे पहले राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर ट्वीट किया कि ‘नए संसद भवन का राष्ट्रपति को उद्घाटन करना चाहिए, न कि पीएम को.’ कांग्रेस अध्यक्ष ने इसे एक कदम आगे बढ़ाया और अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और दलित कार्ड खेलते हुए पीएम मोदी पर दलित विरोधी और पिछड़े होने का आरोप लगाया. उन्होंने आरोप लगाया कि नए भवन के शिलान्यास समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद को आमंत्रित नहीं किया गया, जबकि उद्घाटन के लिए वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं किया गया है.

यहां खड़गे का स्टैंड महत्वपूर्ण है. सभी की निगाहें 2024 के लोकसभा चुनावों के साथ-साथ आगामी राज्य चुनावों पर भी टिकी हैं. कांग्रेस को एससी, एसटी और पिछड़ों को लुभाकर 2024 में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह उनका मजबूत वोट बैंक रहा है और कर्नाटक में भी यह उनके पक्ष में गया. माना जा रहा है कि इसलिए बहिष्कार की राजनीति में यह मोड़ आया.

अध्यादेश पर विवाद
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को दी गई नियुक्तियों और तबादले की शक्ति पर रोक लगाने वाले अध्यादेश के मुद्दे पर विपक्ष बंटा हुआ है. आम आदमी पार्टी (आप) इस पर समर्थन पाने के लिए जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और शिवसेना (उद्धव गुट) जैसे विपक्षी दलों से संपर्क साध रही है. लेकिन कांग्रेस द्वारा इसमें साथ नहीं देने से विपक्षी दलों में विभाजन दिखाई दे रहा है.