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रुपये के ग्‍लोबल करेंसी बनने से आम आदमी को फायदा, विदेशी घूमना-पढ़ना हो जाएगा सस्‍ता

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और भारत सरकार लंबे समय से रुपये को इंटरनेशनल मुद्रा बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. अभी तक इस राह में काफी सफलता मिल चुकी है, लेकिन लंबा रास्‍ता अभी बाकी है. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास पहले ही कह चुके हैं कि रुपये को ग्‍लोबल करेंसी बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाएगी. आखिर आरबीआई और सरकार क्‍यों रुपये को इंटरनेशनल करना चाहती है और इसका देश व आम आदमी को क्‍या फायदा मिलेगा. इसके नफा-नुकसान की पूरी डिटेल हम आपको इस खबर में दे रहे हैं.

दरअसल, अभी दुनिया में 4 देशों की करेंसी का ही बोलबाला है. सबसे ऊपर डॉलर, फिर यूरो, पाउंड और जापानी मुद्रा येन का नंबर आता है. चीन भी अपनी मुद्रा को इंटरनेशनल बनाने की कोशिश कर रहा है और उसे भी आंशिक सफलता मिली है. भारत को मुद्रा के ग्‍लोबलाइजेशन से होने वाले फायदों के बारे में बखूबी पता है और इसका पूरी इकोनॉमी पर क्‍या असर होगा, इसका भी अंदाजा है. यही कारण है कि सरकार और रिजर्व बैंक हर हाल में यह काम पूरा करना चाहते हैं. रुपये के ग्‍लोबलाइजेशन से एक नहीं कई स्‍तर पर फायदे होंगे.

बिजनेस को सबसे ज्‍यादा फायदा
रुपये को ग्‍लोबल लेवल पर मान्‍यता दिलाने से सबसे ज्‍यादा फायदा इंडियन बिजनेस को होगा. सबसे बड़ा फायदा यही होगा कि मुद्रा को लेकर कारोबार पर आने वाला कोई भी जोखिम नहीं रहेगा. जैसे अभी ग्‍लोबल फॉरेक्‍स मार्केट में डॉलर में तेजी की वजह से रुपये पर दबाव बढ़ता है. रुपये को इंटरनेशनल मान्‍यता मिलने के बाद इंडियन बिजनेसेज को ग्‍लोबल लेवल पर विकसित होने में आसानी होगी. छोटे कारोबारी अपना बिजनेस आसानी से ग्‍लोबल मार्केट तक पहुंचा सकेंगे.

आयात पर दबाव घटेगा
दुनियाभर में कारोबारी ट्रांजेक्‍शन के लिए अभी डॉलर का ही इस्‍तेमाल होता है. भारत को भी हर बार ट्रांजेक्‍शन के लिए रुपये को डॉलर में बदलना पड़ता है. इस एक्‍सचेंज के लिए हर बार मोटी रकम भी फीस के रूप में चुकानी पड़ती है. इसका सीधा फायदा अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था को होता है. अगर भारतीय मुद्रा को ग्‍लोबल करेंसी का दर्जा मिल जाता तो भारत अपने आयात के लिए सीधे रुपये का इस्‍तेमाल किया जा सकता है. इससे एक्‍सचेंज पर खर्च होने वाली मोटी रकम बच जाएगी