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आज ही के दिन शुरू हुआ था भारत का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर, पंडित नेहरू ने नाम दिया था ‘अप्सरा’, जानें क्यों?

आज ही के दिन यानी 4 अगस्त 1956 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत और एशिया का पहला परमाणु अनुसंधान रिएक्टर चालू किया गया था. परमाणु अनुसंधान रिएक्टर APSARA को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) द्वारा शुरू किया गया था. इसके डिजाइन की संकल्पना 1955 में डॉ. होमी भाभा (भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक) द्वारा की गई थी. जब रिएक्टर से नीली किरणें निकलीं तब जवाहरलाल नेहरू ने इसका नाम अप्सरा रख दिया और इसे 1957 में राष्ट्र को समर्पित कर दिया.

रिएक्टर का निर्माण यूनाइटेड किंगडम की सहायता से किया गया था जिसने प्रारंभिक ईंधन प्रदान किया था. अप्सरा एक पूल-प्रकार का रिएक्टर था और 80% शुद्ध यूरेनियम ईंधन का उपयोग करता है. इस रिएक्टर के चालू होने से भारत ने रेडियो आइसोटोप का उत्पादन शुरू कर दिया. रेडियो आइसोटोप का चिकित्सा, पाइपलाइन निरीक्षण, खाद्य संरक्षण के अलावा कई जगहों पर महत्व है.

रेडियो आइसोटोप का उपयोग कृषि में भी पाया गया है. वैज्ञानिक विकास सिमुलेशन, विकिरण के बाद भंडारण प्रभाव, प्रेरित रेडियोधर्मिता की भूमिका, न्यूट्रॉन विकिरण और रासायनिक उत्परिवर्तन के संयुक्त प्रभावों का अध्ययन करने में सक्षम हैं. इससे रोग प्रतिरोधी और अधिक उपज देने वाली फसल किस्मों को विकसित करने में काफी मदद मिली है.

आज ही के दिन यानी 4 अगस्त 1956 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत और एशिया का पहला परमाणु अनुसंधान रिएक्टर चालू किया गया था. परमाणु अनुसंधान रिएक्टर APSARA को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) द्वारा शुरू किया गया था. इसके डिजाइन की संकल्पना 1955 में डॉ. होमी भाभा (भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक) द्वारा की गई थी. जब रिएक्टर से नीली किरणें निकलीं तब जवाहरलाल नेहरू ने इसका नाम अप्सरा रख दिया और इसे 1957 में राष्ट्र को समर्पित कर दिया.

रिएक्टर का निर्माण यूनाइटेड किंगडम की सहायता से किया गया था जिसने प्रारंभिक ईंधन प्रदान किया था. अप्सरा एक पूल-प्रकार का रिएक्टर था और 80% शुद्ध यूरेनियम ईंधन का उपयोग करता है. इस रिएक्टर के चालू होने से भारत ने रेडियो आइसोटोप का उत्पादन शुरू कर दिया. रेडियो आइसोटोप का चिकित्सा, पाइपलाइन निरीक्षण, खाद्य संरक्षण के अलावा कई जगहों पर महत्व है.

रेडियो आइसोटोप का उपयोग कृषि में भी पाया गया है. वैज्ञानिक विकास सिमुलेशन, विकिरण के बाद भंडारण प्रभाव, प्रेरित रेडियोधर्मिता की भूमिका, न्यूट्रॉन विकिरण और रासायनिक उत्परिवर्तन के संयुक्त प्रभावों का अध्ययन करने में सक्षम हैं. इससे रोग प्रतिरोधी और अधिक उपज देने वाली फसल किस्मों को विकसित करने में काफी मदद मिली है.