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किन टैक्सपेयर्स को पुराना रिजीम छोड़ अपना लेना चाहिए नया वाला, जानिए

इनकम टैक्स के लिए नया साल शुरू हो चुका है. इसके साथ ही टैक्स बचाने और टैक्स डिक्लरेशन के लिए ऑफिस से मेल आना शुरू हो गया है. यह मेल होगा इनकम टैक्स रिजीम (Income Tax Regime) को चुनने को लेकर. दरअसल, केंद्रीय बजट 2020 (Budget 2020) में वित्त मंत्री द्वारा न्यू टैक्स रिजीम (New Tax Regime) पेश की गई थी. इसे सिम्लीफाइड टैक्स रिजीम के रूप में भी जाना जाता है. यह ओल्ड टैक्स रिजीम (Old Tax Regime) की तुलना में कम कटौती और छूट के साथ कम टैक्स रेट्स की पेशकश करती है. इनकम टैक्स प्रोविजन किसी व्यक्ति को दोनों में से किसी एक रिजीम को चुनने की अनुमति देते हैं. यह चुनाव हर साल किया जा सकता है.

ओल्ड टैक्स रिजीम से न्यू टैक्स रिजीम में परिवर्तन मुख्य रूप से इनकम लेवल, संभावित टैक्स सेविंग्स, कटौती, ओवरऑल टैक्स प्लानिंग जैसे प्रमुख कारकों पर निर्भर करता है. न्यू रिजीम के तहत कम टैक्स दरें कई टैक्सपेयर्स के लिए टैक्स लायबलिटीज को कम कर सकती हैं.

इन फैक्टर्स का ध्यान रखते हुए करें संभावित टैक्स सेविंग्स का आकलन
फाइनेंशियल एक्सप्रेस से बात करते हुए डेलॉइट इंडिया की पार्टनर दिव्या बावेजा कहती हैं, ”न्यू टैक्स रिजीम पर स्विच करना है या नहीं इसका मूल्यांकन करने के लिए, दोनों रिजीम के तहत टैक्स लायबलिटीज की तुलना करके, इनकम लेवल, कटौती, छूट और लागू टैक्स रेट्स को ध्यान में रखते हुए संभावित टैक्स सेविंग्स का आकलन करना महत्वपूर्ण है. जो लोग न्यू रिजीम में कम टैक्स से लाभान्वित होंगे, उन्हें बदलाव करना फायदेमंद लग सकता है. उदाहरण के तौर पर, 7.5 लाख रुपये तक की ग्रॉस इनकम वाले निवासी वेतनभोगी व्यक्तियों पर न्यू टैक्स रिजीम के तहत कोई टैक्स लायबलिटीज नहीं होता है. इसके अलावा, 5 करोड़ रुपये से अधिक कमाने वाले कर्मचारियों को कम सरचार्ज के कारण नई रिजीम के तहत लाभ हो सकता है.”

कटौतियों और छूटों का मूल्यांकन करना अहम
प्रत्येक रिजीम के तहत उपलब्ध कटौतियों और छूटों के प्रभाव का मूल्यांकन करना भी महत्वपूर्ण है. ओल्ड रिजीम ढेर सारी कटौतियां और छूट प्रदान करती है, जबकि न्यू रिजीम कम विकल्प प्रदान करती है. वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध कॉमन छूट और कटौतियां जैसे हाउस रेंट अलाउंस, लीव ट्रैवल अलाउंस, 80सी, 80डी (मेडिकल इंश्योरेंस) आदि न्यू रिजीम के तहत उपलब्ध नहीं है. हालांकि, वेतनभोगी टैक्सपेयर्स के लिए स्टैंडर्ड कटौती और नेशनल पेंशन स्कीम में इंप्लॉयर के योगदान के लिए कटौती दोनों रिजीम के तहत उपलब्ध है.