पहली नजर में आपको स्वास्थ्य सेवा पर केंद्र सरकार का खर्च बढ़ता हुआ लग सकता है. हालांकि, यह वास्तव में पिछले पांच वर्षों (2018-19 से 2023-24) में लगातार घट रहा है, चाहे बजट के हिस्से के रूप में हो या जीडीपी के प्रतिशत के रूप में. वास्तव में, 2019-20 के बाद से स्वास्थ्य पर खर्च मुश्किल से महंगाई के साथ तालमेल बिठा पाया है. कुल बजट के प्रतिशत के रूप में, स्वास्थ्य व्यय 2018-19 में 2.4% से घटकर 2023-24 में 1.9% रह गया है. वहीं, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में देखें तो यह 2023-24 में 0.30% से घटकर 0.28% हो गया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, मुद्रास्फीति के मामले में, 2019-20 में व्यय 66,000 करोड़ रुपये से थोड़ा ज्यादा था, जबकि 2023-2024 में यह 83,500 करोड़ रुपये से थोड़ा कम था. अगर थोक मूल्य सूचकांक का उपयोग करके मुद्रास्फीति को समायोजित करें तो यह 2018-19 में 65,000 करोड़ रुपये से 66,000 करोड़ रुपये तक की मामूली बढ़ोतरी को दर्शाता है. यह इस तथ्य को भी ध्यान में नहीं रखता है कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में मुद्रास्फीति सामान्य मूल्य स्तरों की तुलना में बहुत अधिक होने की संभावना है.
हेल्थ सेस के बाद भी खर्च घटा
इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि यह कम खर्च हेल्थ सेस के माध्यम से एकत्र धन को जोड़ने के बाद है. जब 2018 में हेल्थ सेस लागू किया गया था, तो यह दावा किया गया था कि यह गरीब और ग्रामीण परिवारों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को बढ़ाएगा. इसके बजाय, सेस के माध्यम से प्रत्येक वर्ष एकत्र किए जाने वाले हजारों करोड़ रुपये का उपयोग वास्तव में सामान्य बजटीय संसाधनों से लगातार कटौती की भरपाई के लिए किया गया है, जिसका स्वास्थ्य क्षेत्र सामना कर रहा है.
2022-23 में, केंद्र के स्वास्थ्य खर्च में हेल्थ सेस से आए 18,300 करोड़ रुपये से अधिक शामिल थे. यदि सेस को हटा दें, तो केंद्र का बजटीय खर्च सिर्फ 59,840 करोड़ रुपये होगा, जो कि मुद्रास्फीति को समायोजित किए बिना भी, कोविड से पहले 2019-20 में खर्च किए गए (66,042 करोड़ रुपये) से कम है.
2018 में जब सेस लगाया गया था, तब स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च सरकार के कुल खर्च का 2.4% था. अगर सरकार 2023-24 में अपने कुल खर्च का यही अनुपात खर्च करती, तो उसे स्वास्थ्य पर 1.07 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च करने चाहिए थे. इसके बजाय, 2023-24 के लिए संशोधित व्यय में सिर्फ 83,400 करोड़ रुपये दिखाए गए, जिसमें स्वास्थ्य सेस से 18,300 करोड़ रुपये शामिल थे.
चौंकाने वाली बात यह है कि 2020-21 (10,655 करोड़ रुपये) और 2021-22 (15,955 करोड़ रुपये) में कोविड के लिए एकमुश्त बड़े व्यय को जोड़ने के बाद भी, इन वर्षों में स्वास्थ्य व्यय उस राशि के बराबर नहीं है जो 2018-19 के दौरान खर्च की गई थी, जो कुल बजट व्यय का 2.4% था.