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क्यों भारत ने किराया देकर लंदन में लंबे समय तक रखा अपना सोना, अब मंगाया

साल 1990-91 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी. भारत के पास केवल 15 दिनों तक के आयात के लिए ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा था. तब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा संकट से निपटने के लिए अपने सोने के भंडार का एक हिस्सा बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास गिरवी रखा था. उस समय आरबीआई ने 46.91 टन सोना इंग्लैंड भेजकर 405 मिलियन डॉलर का उधार लिया था. ब्रिटेन के पास जो सोना भेजा गया था, उसमें कुछ हिस्सा बैंक ऑफ जापान के पास रखे गये गिरवी सोने का भी था. 

हालांकि, भारत ने नवंबर 1991 तक ही ब्रिटेन से लिए गए कर्ज का भुगतान कर दिया था, लेकिन आरबीआई ने लॉजिस्टिक कारणों से सोने को बैंक ऑफ इंग्लैंड की तिजोरी में रखना ज्यादा पसंद किया. भारतीय रिजर्व बैंक ने लगभग दो माह पहले ब्रिटेन से अपना 100 मीट्रिक टन सोना घरेलू तिजोरियों में ट्रांसफर कर दिया. जून माह के अंत में वित्त वर्ष 2025 के लिए आरबीआई की दूसरी मौद्रिक नीति पेश करने के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने सोने के भंडार को ब्रिटेन से भारत ट्रांसफर कर दिया गया है, क्योंकि देश में भी पर्याप्त भंडारण क्षमता है. 

क्यों रखा जाता है विदेश में सोना
विदेश में रखे सोने का उपयोग व्यापार, स्वैप में प्रवेश और रिटर्न अर्जित करने के लिए आसानी से किया जा सकता है. आरबीआई अंतरराष्ट्रीय बाजारों से भी सोना खरीदता है, और इसे विदेश में रखने से इन लेनदेन में आसानी होती है. आरबीआई के लिए इसे बैंक ऑफ इंग्लैंड की तिजोरियों में रखना तार्किक रूप से सुविधाजनक है. दूसरा बड़ा कारण ये है कि बैंक ऑफ इंग्‍लैंड सैकड़ों साल से भारत के सोने की हिफाजत करता आ रहा है. उसे इस मामले में काफी अनुभव है. इस बैंक को दुनिया का सबसे सुरक्षित बैंक भी माना जाता है.

अभी भी विदेश में है 400 टन सोना
इस ट्रांसफर से पहले, आरबीआई का विदेशों में लगभग 500 टन और भारत में 300 टन सोना जमा था. 100 टन भारत मंगाने के साथ, सोने का भंडार अब समान रूप से वितरित हो गया है. अब भारत और विदेश में प्रत्येक में 400-400 टन सोना जमा है. फिर यह भी अटकलें थीं कि हो सकता है कि हाल की भू-राजनीतिक घटनाओं, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा रूस के विदेशी मुद्रा भंडार की मान्यता रद्द करने ने सोने को भारत वापस लाने के निर्णय को प्रभावित किया हो. ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंताओं ने विदेशों में सोने के भंडार की सुरक्षा के बारे में भारत सरकार की चिंताओं को बढ़ा दिया था. अन्य देश भी इसी तरह के जोखिमों से बचने के लिए अपना सोना अपने घऱ में रखना पसंद कर सकते हैं.

आरबीआई क्या कर सकता है सोने के साथ?
आरबीआई सोने की कीमतों को संतुलित करने के लिए घरेलू बाजार में इस सोने का उपयोग कर सकता है. विशेष रूप से गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड जैसे निवेश उत्पादों की उच्च घरेलू मांग को देखते हुए. यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि सोना देश के भीतर ही रहे. साथ ही बेकार खपत को बढ़ावा दिए बिना स्थानीय सर्राफा बाजार के विकास का समर्थन करता है. देश के भीतर, सोना नागपुर और मुंबई में मिंट रोड पर पूर्व आरबीआई मुख्यालय भवन में तिजोरियों में रखा जाता है.