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यूपीएस में कर्मचारियों को मिलेगी ज्यादा पेंशन, सरकार का बोझ भी होगा कम, जानिए सरकार ने क्यों बढ़ाया योगदान

केंद्र सरकार ने साल 2004 में नेशनल पेंशन स्कीम यानी NPS की शुरूआती की थी ताकि सरकार पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को कम किया जा सके. एनपीएस में सरकार 14% का योगदान देती थी, जबकि कर्मचारी का योगदान उसके वेतन और महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत होता था. यूपीएस में कर्मचारी का योगदान में बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन सरकार ने अपने योगदान को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 18.5 प्रतिशत कर दिया है. इससे यूपीएस में कर्मचारियों के लिए पेंशन फंड एनपीएस के मुकाबले अधिक होगा.

मौजूदा व्यवस्था में एनपीएस के तहत कर्मचारी अपने पेंशन फंड को अपने हिसाब से मैनेज कर सकता है. मतलब उस फंड का पैसा कहां लगेगा, यह कर्मचारी तय कर सकता है. वहीं, यूपीएस में 10 प्रतिशत कर्मचारी तो 18.5 प्रतिशत सरकार अपना योगदान देगी. इस 28.5 प्रतिशत में से कर्मचारी 20 प्रतिशत फंड को मैनेज कर सकेगा, बाकी के 8.5 प्रतिशत फंड को सरकार अपने हिसाब से मैनेज करेगी. इस वजह से भविष्य में सरकार पर पेंशन का भार कम आएगा.

OPS में क्या थी व्यवस्था?
ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस में इस प्रकार के फंड की कोई व्यवस्था नहीं थी और सरकार ही पूरी तरह से कर्मचारियों की पेंशन का बोझ उठाती थी. आगामी 1 अप्रैल 2025 से लागू होने वाली यूपीएस में नौकरी के अंतिम वर्ष के औसत सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में निर्धारित होगा. जबकि ओपीएस में अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया जाता था.

यहां पर थोड़ा अंतर है क्योंकि अंतिम वर्ष में प्रमोशन मिलने पर सैलरी अगर बढ़ जाती है तो उस सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन नहीं मिलकर उस साल के औसत वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित होगा. एनपीएस में पेंशन की कोई सीमा निर्धारित नहीं थी और यह राशि कुछ भी हो सकती थी.

यूपीएस में 10 साल नौकरी करने के बाद रिटायरमेंट के बाद कम से कम 10,000 रुपये पेंशन तो हर हाल में मिलेगी. पेंशनर्स के निधन के बाद उनके परिवार को उनकी आखिरी पेंशन की 60 प्रतिशत राशि दी जाएगी. एनपीएस में ऐसी व्यवस्था नहीं थी.

सरकार ने क्यों बढ़ाया योगदान?
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, फंड मैनेजरों का मानना है कि 12 महीनों के लिए औसत वेतन का 50% कमाने के लिए कोष बड़ा होना चाहिए और सरकार द्वारा 14% योगदान के साथ यह उद्देश्य पूरा नहीं होता. इस वजह से सरकार ने अपने योगदान में वृद्धि की. साथ ही, कर्मचारी योगदान को 10% पर बनाए रखा. आगे चलकर, बाजार रिटर्न में गिरावट की स्थिति में सरकार को योगदान का अपना हिस्सा बढ़ाना पड़ सकता है.