छत्तीसगढ़

राम-लक्ष्मण से लेकर हेमा मालिनी तक, 23 हजार वैरायटी, समझें छत्तीसगढ़ को क्यों कहा जाता है धान का कटोरा

रायपुर. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. इसका कारण यह भी है कि यहां करीब 23 हजार 208 धान की प्रजातियां पाई जाती रही हैं. हालांकि बदलते समय के साथ यह धान की प्रजातियां विलुप्त होते जा रही है. बड़ी बात यह है कि छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली धान की कई प्रजातियों में बहुत सी दवाई की तरह भी काम करती थी. जानकारों का तो यह भी कहना है कि कुछ बीमारियों के लिए आज जो छोटे बच्चों को वैक्सीन लगाया जाता है, कभी उन बीमारियों से बचाने गर्भवती महिलाओं को चावल की वही वैरायटी 9 महीने के दौरान खिलाई जाती थी. यहां तक दावा है कि कैंसर रोधी गुण भी इनमें पाए जाते हैं. अब राज्य का कृषि विश्वविद्यालय इन्हें वापस संग्रहित करने में लगा है. धान की इन प्रजातियों में हेमा मालिनी और राम लक्ष्मण भी शामिल हैं.

छत्तीसगढ़ को एशिया का दूसरा सबसे बड़ा धान का हब माना जाता है. पहले नंबर पर फिलिपिंस है. ऐसा इसलिए क्योंकि छत्तीसगढ़ में करीब 23 हजार 250 से अधिक धान की प्रजातियां मौजूद थी. वहीं सरकारों की उदासीनता और संरक्षण के अभाव में यह प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में जो धान की प्रजातियां मौजूद हैं वो अपने आप में बेशकीमती हैं. सबकी अपनी खासियत है.

इम्यूनीटी बूस्टर का करती है काम

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर गजेन्द्र चंद्राकर का कहना है कि करीब 11 धान की ऐसी वैरायटी है जो बहुत ज्यादा मेडिशिनल वैल्यू लिए हुए है. जैसे की गठवन धान, इसका चांवल गर्भवती महिलाओं को खिलाया जाता था ताकि बच्चे को गठिया की बीमारी ना हो. राम लक्ष्मण धान, जिसमें एक ही बाली में चांवल के 2 दाने होते हैं. कई धान की वैरायटी ऐसी थी जिसके चांवल का माढ़ बनाकर पिया जाता था. ग्रामीण इलाकों में इसे इम्यूनीटी बूस्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. धान की कुछ ऐसी वैरायटी ऐसी हैं जिस पर भाभा एटॉमिक सेंटर में रिसर्च चल रहा है. माना जाता है कि  इसमें कैंसर रोधी तत्व पाए जाते हैं.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में इसे संग्रहित करने का काम किया जा रहा है. इसके जर्म प्लाज्म संरक्षित किए जा रहे हैं. कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मंगला पारेख और डॉक्टर मोमिता बैनर्जी करीब 10 सालों से अधिक समय से इस पर रिसर्च कर रही हैं. विश्वविद्यालय में इन विलुप्त होती प्रजातियों को किसानों से इकट्ठा करके उनके जर्म प्लाज्म संरक्षित कर रही है. इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय के लैब में 23 हजार 250 वैरायटी के धान हैं. इनके नाम भी काफी दिलचस्प हैं. छत्तीसगढ़ में पहले से ही धान की ऐसी किस्म थी जिसमें अलग अलग मिनरल्स पहले से मौजूद थे जो भोजन के साथ दवाई का भी काम करते थे.