चुनाव के दौरान फ्री वादों को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को कड़ी फटकार लगाई है. शीर्ष ने नाराजगी जताते हुए आयोग से पूछा कि उसकी ओर से अब तक हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया गया है? चीफ जस्टिस यूयू ललित ने सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग से हलफनामा मीडिया में प्रकाशित होने पर नाराजगी जताई. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से कहा, “हमें हलफनामा नहीं मिलता, लेकिन सभी न्यूज पेपर्स को मिल जाता है. हमने आपका हलफनामा न्यूज पेपर में पढ़ लिया है.”
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव के पहले अपना घोषणा पत्र निर्वाचन आयोग को भेजती हैं? याचिकाकर्मा के वकील विकास सिंह ने अदालत से कहा, “नहीं ऐसा कोई नियम नहीं है.” केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- “ज्यादातर मुफ्त की घोषणाएं राजनतिक दलों के मेनिफेस्टो का हिस्सा नहीं होती हैं. चुनाव प्रचार के दौरान नेता मुफ्त की घोषणाएं कर जाते हैं.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- “सभी पक्ष मानते हैं कि यह मुद्दा है. जो टैक्स देते हैं वे सोचते होंगे कि उनका पैसा विकास के लिए लगना चाहिए, न कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव जीतने के लिए जनता को चीजें मुफ्त में देने के लिए. यह एक गंभीर मामला है. सवाल यह है कि हम किस हद तक इस मामले में जा सकते हैं. चुनाव आयोग है, राजनीतिक पार्टियां हैं. आर्थिक अनुशासन होना चाहिए. दूसरे देशों को देखना चाहिए. भारत में हमने राज्य और केंद्र की स्कीम को देखा है. मान लीजिए आप कह देते हैं कि आज से मुफ्त की चीजें नहीं देनी देनी होंगी. उसका रिस्पाॅन्स क्या होगा ये भी देखना होगा. इसलिए एक कमेटी जरूरी है, जो व्यापक स्तर पर इन मुद्दों को जांचेगी, परखेगी.”
प्रधान न्यायाधीश ललित ने खुद से जुड़ी एक घटना का किया जिक्र
प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित ने खुद से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, “मेरे ससुर एक किसान हैं और सरकार ने बिजली कनेक्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है. वह कनेक्शन का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं कुछ कर सकता हूं? मैंने उनसे कहा कि यही पॉलिसी है. लेकिन बाद में चुनाव के दौरान इसे रेगुलराइज कर दिया गया. मैं अपने घर में एक ईंट भी नहीं जोड़ सकता. क्योंकि अगर ऐसा करता हूं तो सैंक्शंड प्लान का उल्लंघन करता हूं. लेकिन मेरे बगल में पड़ोसी फ्लोर बना रहे हैं और चुनाव के वक्त सरकार उसे रेगुलराइज कर देती है. आज यही स्थिति है. आखिर हम क्या संदेश दे रहे हैं?