छत्तीसगढ़

पंजाब की धरती पर ‘पहटिया’ का परचम, खैरागढ़ विश्वविद्यालय ने दी शानदार प्रस्तुति

खैरागढ़। 17वां टीएफटी नेशनल थियेटर फेस्टिवल-2022 में इस बार इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के द्वारा छत्तीसगढ़ी नाटक “पहटिया” का मंचन किया गया। पंजाब के चंडीगढ़ में 2 नवंबर से 17 नवंबर 2022 तक जारी इस भव्य आयोजन में विश्वविद्यालय के डीन व नाट्यविभाग के प्रमुख डॉ. योगेंद्र चौबे बतौर वक्ता भी आमंत्रित किए गए।

उल्लेखनीय है कि यह आयोजन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से “आजादी का 75वां महोत्सव” के अंतर्गत कराया गया। संगीत नाटक अकादमी, हरियाणा कला परिषद, नार्थ सेंट्रल जोन कल्चरल सेंटर प्रयागराज, ईस्ट जोन कल्चरल सेंटर कोलकाता जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएं “थिएटर फॉर थिएटर” के भव्य कार्यक्रम में सहभागी हुईं। आपको बता दें कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत 7 नवंबर 2022 की शाम 6 बजे चंडीगढ़ स्थित पंजाब कला भवन में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के रंगमंडल (नाट्य विभाग) द्वारा छत्तीसगढ़ी नाटक “पहटिया” का मंचन किया गया। प्रख्यात रंगकर्मी मिर्जा मसूद इसके लेखक हैं, वहीं डॉ. योगेंद्र चौबे ने नाट्य रूपांतरण और निर्देशन किया है।

नाटक की शुरुआत परलकोट के गेंद सिंह के लिए जारी अंग्रेजी फरमान से होती है, जिसमें राजा भोंसले द्वारा परलकोट को 12 बरस के लिए अंग्रेजी सरकार को दिए जाने का जिक्र होता है । जनता की पुकार पर वीर गेंद सिंह तीर कमान के साथ अंग्रेजों के दमन के विरुद्ध छापामार युद्ध का आरंभ कर देते हैं, पर अंग्रेजों के तोपों के बीच तीर-कमान कब तक चलते.? आखिरकार गेंद सिंह को पकड़कर फांसी पर लटका दिया जाता है। इस घटना से छत्तीसगढ़ में क्रांति की ज्वाला और भी तीव्र हो जाती है।सोनाखान के वीर नारायण सिंह इस क्रांति को और भी प्रज्वलित करते हैं। बाद में गुंडाधुर जैसे वीर इस क्रांति में स्वयं को आहूत करते हैं। बहुधा, सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, तो केवल राष्ट्रीय स्तर पर ज्ञात क्रांतिकारियों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का ही नाम उल्लेख किया जाता है, आंचलिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम कहीं हाशिए पर रख दिए जाते हैं। गांव, कस्बों और छोटे शहरों में स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी जन-जन में जलाने वाले यह नायक लोक के मन में बसते हैं। यह नाटक ऐसे ही क्रांतिकारियों को केंद्र में लाने की कोशिश है। प्रस्तुत नाटक पहटिया में छत्तीसगढ़ के क्रांतिकारी शहीद वीर नारायण सिंह, गुंडाधुर, हनुमान सिंह और गेंद सिंह जैसे नायकों के संघर्षों का चित्र प्रस्तुत किया गया। नाटक का मुख्य पात्र पहटिया है। छत्तीसगढ़ में गाय चराने वाले को पहटिया कहा जाता है। यह पहटिया गांव-गांव जाकर अभिनय और अपने गीतों के द्वारा क्रांतिकारियों की गाथा सुनाकर लोगों में क्रांति की भावना का संचार करता है।