प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की प्राचीन भावना आधुनिक विश्व को एकीकृत दृष्टिकोण व समाधान दे रही है. विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के ‘रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर’ में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा संयुक्त राष्ट्र समर्थित संगठन ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप’ द्वारा आयोजित ‘वन वर्ल्ड टीबी समिट’ को संबोधित किया.
उन्होंने कहा कि एक देश के तौर पर भारत की विचारधारा का प्रतिबिंब ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना में झलकता है और यह प्राचीन विचार आधुनिक विश्व को एकीकृत दृष्टिकोण तथा समाधान दे रहा है. अपने संबोधन की शुरुआत ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष से करते हुए उन्होंने कहा कि 2014 के बाद से भारत ने जिस नई सोच तथा दृष्टिकोण के साथ तपेदिक (टीबी) के खिलाफ काम करना शुरू किया वह वाकई ‘अभूतपूर्व’ है.
इस कार्यक्रम में प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री डॉ मनसुख मांडविया व उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने मोदी का स्वागत किया. इस आयोजन में दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए. ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप’ की अधिशासी निदेशक डॉ लुसिका दितिउ ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भारत में 2025 तक क्षय रोग समाप्त हो जाएगा. उन्होंने नारा दिया ‘टीबी हारेगा-इंडिया जीतेगा, टीबी हारेगी-दुनिया जीतेगी.’
पीएम नरेंद्र मोदी के संबोधन की 10 अहम बातें:
पीएम मोदी ने कहा, “नौ वर्षों में टीबी के खिलाफ लड़ाई में भारत ने अनेक मोर्चों पर एक साथ काम किया है जैसे जनभागीदारी, पोषण के लिए विशेष अभियान, इलाज के लिए नई रणनीति, तकनीक का भरपूर इस्तेमाल और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले ‘खेलो इंडिया’ और योग जैसे अभियान.”
टीबी हारेगा, देश जीतेगा! 13.10 लाख मरीज प्रधानमंत्री टीबी (टीबी) मुक्त भारत अभियान के तहत लाभार्थी. 71 हजार से अधिक निक्षय मित्र 10 लाख से अधिक टीबी रोगियों की कर रहे सहायता.
आज भारत में टीबी के मरीजों की संख्या कम हो रही है. कर्नाटक और जम्मू-कश्मीर को टीबी मुक्त अवार्ड से सम्मानित किया गया है. मैं इस सफलता को प्राप्त करने वाले लोगों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं.
भारत अब वर्ष 2025 तक टीबी खत्म करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है. टीबी खत्म करने का वैश्विक लक्ष्य वर्ष 2030 है लेकिन भारत वर्ष 2025 तक टीबी खत्म करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है.
टीबी के खिलाफ लड़ाई में भारत ने जो बहुत बड़ा काम किया है, वो है- जनभागीदारी. हमने ‘टीबी मुक्त भारत’ के अभियान से जुड़ने के लिए देश के लोगों से ‘नि-क्षय मित्र’ बनने का आह्वान किया था. इस अभियान के बाद करीब-करीब 10 लाख टीबी मरीजों को देश के सामान्य नागरिकों ने अपनाया है.
कोई भी टीबी मरीज इलाज से छूटे नहीं, इसके लिए हमने नई रणनीति पर काम किया. टीबी के मरीजों की स्क्रीनिंग के लिए, उनके ट्रीटमेंट के लिए, हमने उन्हें आयुष्मान भारत योजना से जोड़ा है. टीबी की मुफ्त जांच के लिए हमने देशभर में लैब्स की संख्या बढ़ाई है.
बीते 9 वर्षों में भारत ने टीबी के खिलाफ लड़ाई में अनेक मोर्चो पर एक साथ काम किया है. जैसे, जनभागीदारी, पोषण के लिए विशेष अभियान, इलाज के लिए नई रणनीति, तकनीकी का भरपूर इस्तेमाल और अच्छी हेल्थ को बढ़ावा देने वाले फिट इंडिया, खेलो इंडिया और योग जैसे अभियान.
2014 के बाद से भारत ने जिस नई सोच और अप्रोच के साथ टीबी के खिलाफ काम करना शुरू किया, वो वाकई अभूतपूर्व है. भारत के ये प्रयास पूरे विश्व को इसलिए भी जानने चाहिए क्योंकि ये टीबी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई का एक नया मॉडल है.
काशी इस बात की गवाही देती है कि चुनौती चाहे कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, जब सबका प्रयास होता है, तो नया रास्ता भी निकलता है. मुझे विश्वास है, टीबी जैसी बीमारी के खिलाफ हमारे वैश्विक संकल्प को काशी एक नई ऊर्जा देगी.
एक देश के तौर पर भारत की विचारधारा का प्रतिबिंब ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ यानी- ‘पूरा विश्व एक परिवार है’ की भावना में झलकता है. ये प्राचीन विचार आज आधुनिक विश्व को ‘एकीकृत विचार’ और ‘एकीकृत समाधान’ दे रहा है.