माता-पिता की संपत्ति में बच्चों का हक होता है. हर परिवार का मुखिया वसीयत में अपनी प्रॉपर्टी को बराबर हिस्सों में बच्चों में बांट देता है ताकि कोई उनकी मृत्यु के बाद फैमिली में किस तरह का संपत्ति विवाद नहीं हो. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बेटे की प्रॉपर्टी में भी मां-बाप का हिस्सा होता है. हालांकि हर माता-पिता जीवनभर मेहनत करके बच्चों का भविष्य संवारते हैं इसलिए उन्हें बेटा-बेटियों की संपत्ति से कोई मोह नहीं होता है. हालांकि, कानून उन्हें अपने बच्चों की प्रॉपर्टी पर कुछ अधिकार देता है.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, पत्नी, बच्चे और मां एक पुरुष की प्रॉपर्टी में प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी होते हैं. अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी प्रॉपर्टी को प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों के बीच समान रूप से बांटा जाता है. आइये विस्तार से जानते हैं इस कानून के तहत क्या व्यवस्था दी गई है.
मां-बाप कैसे करें बेटे की संपत्ति पर अधिकार का दावा
यदि किसी मृत व्यक्ति की माँ, पत्नी और बच्चे जीवित रहते हैं, तो संपत्ति को माँ, पत्नी और पुत्रों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाता है. रियल एस्टेट कंपनी मैजिक ब्रिक्स के अनुसार, माता-पिता का अपने बच्चों की संपत्ति पर पूरा अधिकार नहीं होता है. हालांकि, बच्चों की असामयिक मृत्यु और वसीयत न होने की स्थिति में, माता-पिता अपने बच्चों की संपत्ति पर अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 बच्चे की संपत्ति पर माता-पिता के अधिकार को परिभाषित करती है. इसके तहत बच्चे की प्रॉपर्टी की माँ पहली वारिस होती है, जबकि पिता बच्चों की संपत्ति का दूसरा वारिस होता है. इस मामले में माताओं को वरीयता दी जाती है. हालांकि, अगर पहले वारिस की सूची में कोई नहीं है, तो दूसरे वारिस के पिता संपत्ति पर कब्जा कर सकते हैं. दूसरे उत्तराधिकारियों की संख्या बड़ी हो सकती है.