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पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज आयशा मलिक ने इमरान खान के फेवर में दिया फैसला, प्रचंड प्रेशर में शाहबाज शरीफ

की पहली महिला जज आयशा मलिक जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के पक्ष में फैसला दिए जाने के कारण सुर्खियों में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के बीच महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए रिजर्व सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए- इंसाफ (पीटीआई) को आरक्षित सीटें प्रदान कीं. इमरान खान की सहयोगी सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल (एसआईसी) ने नेशनल असेंबली और प्रांतीय असेंबली में आरक्षित सीटों में उसे हिस्सेदारी न देने के पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) के फैसले को बहाल रखने के पेशावर हाईकोर्ट के आदेश को देश की सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी थी.

इस फैसले से प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की कमजोर गठबंधन सरकार पर दबाव बढ़ गया है. पाकिस्तान चुनाव आयोग के दिसंबर 2023 के फैसले के कारण 8 फरवरी के चुनावों से बाहर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के 8-5 बहुमत के फैसले ने न केवल पीटीआई की संसद में वापसी का रास्ता साफ किया, बल्कि नेशनल असेंबली (एनए) में गठबंधन सरकार पर दबाव भी बढ़ा दिया. फैसले की घोषणा जस्टिस मंसूर अली शाह ने की और जस्टिस अतहर मिनल्लाह, शाहिद वहीद, मुनीब अख्तर, मुहम्मद अली मज़हर, आयशा मलिक, सैयद हसन अज़हर रिज़वी और इरफ़ान सआदत खान ने इसका समर्थन किया.

निर्दलीय लड़े थे पीटीआई उम्मीदवार
पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों ने अपनी पार्टी से क्रिकेट बैट चुनाव चिह्न छीन लिए जाने के बाद निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था. चुनाव के बाद, वे आरक्षित सीटों में हिस्सेदारी का दावा करने के लिए एसआईसी में शामिल हो गए, क्योंकि निर्दलीय अतिरिक्त सीटों के लिए पात्र नहीं थे. हालांकि, ईसीपी ने फैसला सुनाया था कि कानूनी दोष होने और आरक्षित सीटों के लिए पार्टी सूची जमा करने के अनिवार्य प्रावधान के उल्लंघन के कारण एसआईसी आरक्षित सीटों पर दावा करने का हकदार नहीं है. इसके अलावा, ईसीपी ने अन्य पार्टियों के बीच सीटें वितरित कीं, जिसमें सत्तारूढ़ पीएमएल-एन और पीपीपी को क्रमशः 16 और पांच अतिरिक्त सीटें मिलीं.

बदल जाएगा नेशनल असेंबली का समीकरण
शुक्रवार के फैसले ने पेशावर हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें उसने ईसीपी के फैसले को बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने ईसीपी के फैसले को बिना कानूनी अधिकार और बिना किसी कानूनी प्रभाव के संविधान के दायरे से बाहर घोषित कर दिया. इसने पीटीआई को आरक्षित सीटों के हकदार उम्मीदवारों की सूची ईसीपी को सौंपने के लिए 15 दिन का समय दिया. 336 सदस्यीय निचले सदन में सत्ताधारी गठबंधन के 200 से अधिक सदस्य हैं, लेकिन फैसले ने उन्हें दो-तिहाई बहुमत से वंचित कर दिया है जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे. फैसले से पहले नेशनल असेंबली में पीटीआई के 84 सदस्य थे. अब उसके सांसदों की बढ़कर 100 से अधिक होने की उम्मीद है.

कौन हैं जस्टिस आयशा मलिक
साल 2022 की 25 जनवरी पाकिस्तान की न्यायपालिका के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, जब आयशा मलिक ने सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जस्टिस के रूप में शपथ ली थी. उससे पहले वह लाहौर हाईकोर्ट में जज थीं. आयशा मलिक की नियुक्ति इस लिए ऐतिहासिक थी, क्योंकि पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत की स्थापना 1956 में हुई थी, लेकिन उसे पहली महिला न्यायाधीश मिलने में 66 साल का लंबा समय लगा.

शपथ ग्रहण में आई थी अड़चन
जस्टिस आयशा मलिक का शपथ ग्रहण उनकी नियुक्ति को लेकर महीनों तक चली बहस के बाद हुआ था. क्योंकि वह लाहौर हाईकोर्ट के न्यायाधीशों में वरिष्ठता में चौथे स्थान पर थीं. इससे योग्यता के आधार पर मलिक की नियुक्ति का समर्थन करने वालों और वरिष्ठता के आधार पर इसका विरोध करने वालों के बीच गतिरोध पैदा हो गया. उनका सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचना इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के अनुसार,वहां जिलास्तर पर 17 प्रतिशत और हाईकोर्ट केवल 4.4 प्रतिशत महिला जज हैं. वहीं, अगर भारत की बात की जाए तो जस्टिस फातिमा बीवी 1989 में सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज थीं.

हॉवर्ड से किया एलएलएम
तीन जून 1966 को जन्मी आयशा मलिक ने कराची ग्रामर स्कूल में शुरुआती पढ़ाई की. उसके बाद उन्होंने कराची के ही गवर्नमेंट कालेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उनका रुझान लॉ की ओर हुआ. लाहौर के कॉलेज ऑफ लॉ से डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में मेसाच्यूसेट्स के हॉवर्ड स्कूल ऑफ लॉ से मास्टर्स यानी एलएलएम (LLM) की पढ़ाई की. आयशा मलिक ने अपना करियर कराची में फखरूद्दीन जी इब्राहिम एंड कंपनी से शुरू किया और 1997 से 2001 तक चार साल यहीं गुजारे. अगले 10 बरसों में उन्होंने खूब नाम कमाया और कई मशहूर कानूनी फर्मों के साथ जुड़ी रहीं.

2012 में बनीं हाईकोर्ट की जज
आयशा मलिक की 2012 में लाहौर हाई कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति हुई. उन्हें देश में महिला अधिकारों की पैरोकार माना जाता है. इसका एक उदाहरण उनका पिछले वर्ष का एक ऐतिहासिक फैसला है, जिसमें बलात्कार के मामलों में महिलाओं पर किए जाने वाले एक विवादित परीक्षण को उन्होंने रद्द कर दिया. क्योंकि यह अक्सर आरोपियों को कानून के फंदे से बच निकलने में मददगार होता था और पीड़िता के चरित्र को संदेह के घेरे में खड़ा कर देता था. आयशा मलिक ने कई प्रमुख संवैधानिक मुद्दों पर फैसला सुनाया है. वह अपने अनुशासन के लिए जानी जाती हैं.