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नो कॉस्ट EMI का क्या मतलब है, फ्री नहीं मिलती सुविधा, ऐसे समझें कंपनियों का खेल

देश में फेस्टिव सीजन शुरू हो चुका है. इस दौरान अलग-अलग ई-कॉमर्स कंपनियां और रिटेल स्टोर फेस्टिव सेल का आयोजन करते हैं. सेल में आपको अलग-अलग प्रोडक्ट पर तरह-तरह के ऑफर मिलते हैं. इसके अलावा अलग-अलग बैंकों के क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड पर भी अलग-अलग तरह के ऑफर मिलते हैं. इस दौरान कई बैंक अपने ग्राहकों को नो कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) या जीरो कॉस्ट ईएमआई (Zero Cost EMI)  की सुविधा देते हैं. आइए जानते हैं कि नो कॉस्ट ईएमआई क्या है?

जीरो कॉस्ट ईएमआई या नो कॉस्ट ईएमआई का मतलब है कि अगर आपने क्रेडिट पर कोई सामान खरीदा है, तो आपको मूलधन पर कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं देना होगा. आप बिना किसी अतिरिक्त लागत के आसान किस्तों में केवल सामान की वास्तविक कीमत का पेमेंट करते हैं.

सामान की कीमत में शामिल होता है ब्याज
यह चीजें सुनने में काफी अच्छा भी लगता है, लेकिन लेकिन बाजार का कटु सत्य यह है कि यहां मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता. बाजार में नो-कॉस्ट ईएमआई की भी कीमत होती है. नो-कॉस्ट ईएमआई में ब्याज परोक्ष रूप से सामान की ज्यादा कीमत वसूल कर नो-कॉस्ट ईएमआई में शामिल किया जाता है, इसलिए ब्याज के लिए कोई एक्सट्रा चार्ज नहीं लगता है. एक्सपर्ट के मुताबिक, जीरो कॉस्ट ईएमआई या नो कॉस्ट ईएमआई कुछ नहीं है, बल्कि मार्केटिंग का एक फंडा है. लोन का ब्याज किसी और रूप में ग्राहकों से ही वसूला जाता है.

कंपनियों का खेल
नो कॉस्‍ट ईएमआई का ऑफर देने से पहले ही कंपनियां उस प्रोडक्‍ट पर अच्‍छा खासा डिस्‍काउंट ले लेती हैं. उदाहरण के लिए आप किसी स्टोर पर 20 हजार रुपये का मोबाइल खरीद रहे हैं. आपने नो कॉस्‍ट ईएमआई की सुविधा लेकर 20,000 रुपए के अमाउंट को ईएमआई में बदलवा लिया. ऐसे में आपको लगेगा कि जितनी मोबाइल की कीमत है, आपसे वही वसूल की जा रही है. लेकिन आपको जो कीमत ऑफर की गई है, उस पर कंपनी ने मोबाइल बनाने वाली कंपनी से पहले ही डिस्‍काउंट ले लिया होगा. 20,000 के मोबाइल को स्टोर ने 15,000 या 16,000 रुपये में खरीदा होगा. ऐसे में नो कॉस्ट ईएमआई का ऑफर करने पर भी स्टोर को घाटा नहीं होता है.

क्रेडिट कार्ड पर कैसे होता है नो कॉस्ट ईएमआई का कैलकुलेशन
अगर आप क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर कोई सामान नो कॉस्ट ईएमआई पर खरीदते हैं तो सामान की कीमत के बराबर की क्रेडिट लिमिट घट जाती है. उदाहरण के तौर पर आपने एक टीवी 18 हजार रुपये में 6 महीने की नो कॉस्ट ईएमआई में खरीदा. खरीदारी करने के बाद उस महीने का बिल तैयार होगा और आपकी क्रेडिट लिमिट अगर पहले 50 लाख रुपये थी तो वह घटकर 32 हजार रुपये रह जाएगी. हर ईएमआई चुकाने के बाद आपकी क्रेडिट लिमिट 3-3 हजार रुपये बढ़ती जाएगी.