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मंकीपॉक्स मरीजों के संपर्क में आए लोगों के बीच ICMR कर सकता है सीरो सर्वे, भारत में अब तक 10 मामले

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) मंकीपॉक्स रोगियों के संपर्क में आए लोगों में एंटीबॉडी की उपस्थिति की जांच करने के लिए एक सीरो-सर्वेक्षण कर सकती है. इसके साथ ही आईसीएमआर यह भी पता लगा सकती है कि उनमें से कितनों में संक्रमण के लक्षण नहीं थे. आधिकारिक सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि ऐसे लोगों का अनुपात कितना है जिनमें वायरल संक्रमण के लक्षण नहीं दिखे हैं.

भारत में अब तक मंकीपॉक्स के 10 मामले सामने आ चुके हैं. एक सूत्र ने कहा, ‘हम भारत में मंकीपॉक्स से प्रभावित लोगों के करीबी संपर्क में आए लोगों के बीच एक सीरो-सर्वेक्षण कराने के बारे में सोच रहे हैं ताकि उनमें एंटीबॉडी की मौजूदगी की जांच की जा सके.’

उन्होंने कहा कि यह पता लगाने का प्रयास है कि उनमें से कितने लोग संक्रमितों के संपर्क में आने के कारण बीमारी की चपेट में आए और उनमें लक्षण नहीं दिखे. उन्होंने कहा कि इस संबंध में चर्चा अभी बहुत शुरुआती चरण में है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मंकीपॉक्स ऐसा वायरस है जो जानवरों से मनुष्यों में फैलता है और इसके लक्षण चेचक के समान होते हैं, हालांकि यह बीमारी चिकित्सकीय रूप से कम गंभीर होती है.

मंकीपॉक्स क्या है?
मंकीपॉक्स मानव चेचक के समान एक दुर्लभ वायरल संक्रमण है. यह पहली बार 1958 में शोध के लिए रखे गए बंदरों में पाया गया था. मंकीपॉक्स से संक्रमण का पहला मामला 1970 में दर्ज किया गया था. यह रोग मुख्य रूप से मध्य और पश्चिम अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन क्षेत्रों में होता है और कभी-कभी अन्य क्षेत्रों में पहुंच जाता है

बीमारी के लक्षण
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मंकीपॉक्स आमतौर पर बुखार, दाने और गांठ के जरिये उभरता है और इससे कई प्रकार की चिकित्सा जटिलताएं पैदा हो सकती हैं. रोग के लक्षण आमतौर पर दो से चार सप्ताह तक दिखते हैं, जो अपने आप दूर होते चले जाते हैं. मामले गंभीर भी हो सकते हैं. हाल के समय में, मृत्यु दर का अनुपात लगभग 3-6 प्रतिशत रहा है, लेकिन यह 10 प्रतिशत तक हो सकता है.

संक्रमण का प्रसार कैसे होता है?
मंकीपॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर के निकट संपर्क के माध्यम से या वायरस से दूषित सामग्री के माध्यम से मनुष्यों में फैलता है. ऐसा माना जाता है कि यह चूहों, चूहियों और गिलहरियों जैसे जानवरों से फैलता है. यह रोग घावों, शरीर के तरल पदार्थ, श्वसन बूंदों और दूषित सामग्री जैसे बिस्तर के माध्यम से फैलता है. यह वायरस चेचक की तुलना में कम संक्रामक है और कम गंभीर बीमारी का कारण बनता है.