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अगर फोन में पाया गया ऐसा वीडियो तो सीधे जाएंगे जेल… CJI चंद्रचूड़ का बड़ा फैसला, मद्रास हाईकोर्ट को फटकारा

अगर आपके फोन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े वीडियो पाए जाते हैं तो भारी मुसीबत में फंस सकते हैं. ऐसे वीडियो पाए जाने पर अब आपके खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण यानी पॉक्सो एक्ट (POCSO) के तहत केस चलाया जाएगा और लंबे समय के लिए जेल की हवा खानी पड़ सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए मद्रास हाईकोर्ट के ऑडर को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या उसे डाउनलोड करना पॉक्सो एक्ट के दायरे में नहीं आता है. सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने साफ किया कि फोन में किसी तरह का पोर्नोग्राफ़िक वीडियो रखना पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है.

सुप्रीम कोर्ट की मद्रास हाईकोर्ट को फटकार
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट को आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने में ‘गंभीर त्रुटि’ करने के लिए फटकार भी लगाई. शीर्ष अदालत ने POCSO अधिनियम में संशोधन का सुझाव दिया, जिसमें ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को ‘बाल यौन शोषण और शोषणकारी सामग्री’ से बदलने का प्रस्ताव दिया गया.

इसी साल मार्च में, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और उसे अपने पास रखना कोई अपराध नहीं है.

क्या है पूरा मामला?
दरअसल चेन्नई पुलिस ने आरोपी का फोन जब्त कर पाया कि उसने चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करके अपने पास रखी थी तो आईटी एक्ट की धारा 67 बी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1) के तहत एफआईआर दर्ज की थी. हालांकि मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना पॉक्सो एक्ट के दायरे में नहीं आता है.

जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश की बेंच ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने बस वह वीडियो डाउनलोड किया था और अकेले ही पोर्नोग्राफी देखी थी और इसे न तो प्रकाशित किया गया था और न ही दूसरों के साथ शेयर किया गया था. कोर्ट ने कहा, ‘चूंकि उसने पोर्नोग्राफिक मकसद के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए इसे अभियुक्त व्यक्ति की ओर से नैतिक पतन के रूप में ही समझा जा सकता है.’

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